Tuesday, 23 May 2017

Maharana pratap of mewar Essay

नाम - कुँवर प्रताप जी (श्री महाराणा प्रताप सिंह जी)
जन्म - 9 मई, 1540 ई.
जन्म भूमि - कुम्भलगढ़, राजस्थान
पुण्य तिथि - 29 जनवरी, 1597 ई.
पिता - श्री महाराणा उदयसिंह जी
माता - राणी जीवत कँवर जी
राज्य - मेवाड़
शासन काल - 1568–1597ई.
शासन अवधि - 29 वर्ष
वंश - सुर्यवंश
राजवंश - सिसोदिया
राजघराना - राजपूताना
धार्मिक मान्यता - हिंदू धर्म
युद्ध - हल्दीघाटी का युद्ध
राजधानी - उदयपुर
पूर्वाधिकारी - महाराणा उदयसिंह
उत्तराधिकारी - राणा अमर सिंह

अन्य जानकारी -
महाराणा प्रताप सिंह जी के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था,
जिसका नाम 'चेतक' था।

राजपूत शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह उदयपुर,
मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे।

वह तिथि धन्य है, जब मेवाड़ की शौर्य-भूमि पर मेवाड़-मुकुटमणि
राणा प्रताप का जन्म हुआ।

महाराणा का नाम
इतिहास में वीरता और दृढ़ प्रण के लिये अमर है।

महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी सम्वत् कॅलण्डर
के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती
है।

महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारी:-

1... महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।

2.... जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे तब उन्होने
अपनी माँ से पूछा कि हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर
आए| तब माँ का जवाब मिला- ”उस महान देश की वीर भूमि
हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ” लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था | “बुक ऑफ़
प्रेसिडेंट यु एस ए ‘किताब में आप यह बात पढ़ सकते हैं |

3.... महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था|

कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।

4.... आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान
उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं |

5.... अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी|
लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया |

6.... हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और
अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए |

7.... महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है |

8.... महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं| इसी
समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है|
मैं नमन करता हूँ ऐसे लोगो को |

9.... हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई।
आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था |

10..... महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा "श्री जैमल मेड़तिया जी" ने दी थी जो 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 मारे गए थे
जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे |

11.... महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था |

12.... मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में
अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे|
आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील |

13..... महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है |

14..... राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके
मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी
की सूंड लगाई जाती थी । यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे|

15..... मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया
हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी और
महलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे |

16.... महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी, दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में।

महाराणा प्रताप के हाथी
की कहानी:

मित्रो आप सब ने महाराणा
प्रताप के घोड़े चेतक के बारे
में तो सुना ही होगा,
लेकिन उनका एक हाथी
भी था। जिसका नाम था रामप्रसाद। उसके बारे में आपको कुछ बाते बताता हुँ।

रामप्रसाद हाथी का उल्लेख
अल- बदायुनी, जो मुगलों
की ओर से हल्दीघाटी के
युद्ध में लड़ा था ने अपने एक ग्रन्थ में किया है।

वो लिखता है की जब महाराणा
प्रताप पर अकबर ने चढाई की
थी तब उसने दो चीजो को
ही बंदी बनाने की मांग की
थी एक तो खुद महाराणा
और दूसरा उनका हाथी
रामप्रसाद।

आगे अल बदायुनी लिखता है
की वो हाथी इतना समझदार
व ताकतवर था की उसने
हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही
अकबर के 13 हाथियों को मार
गिराया था

वो आगे लिखता है कि
उस हाथी को पकड़ने के लिए
हमने 7 बड़े हाथियों का एक
चक्रव्यूह बनाया और उन पर
14 महावतो को बिठाया तब
कहीं जाकर उसे बंदी बना पाये।

अब सुनिए एक भारतीय
जानवर की स्वामी भक्ति।

उस हाथी को अकबर के समक्ष
पेश किया गया जहा अकबर ने
उसका नाम पीरप्रसाद रखा।
रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने
और पानी दिया।
पर उस स्वामिभक्त हाथी ने
18 दिन तक मुगलों का न
तो दाना खाया और न ही
पानी पिया और वो शहीद
हो गया।

तब अकबर ने कहा था कि
जिसके हाथी को मैं अपने सामने
नहीं झुका पाया उस महाराणा
प्रताप को क्या झुका पाउँगा।
ऐसे ऐसे देशभक्त चेतक व रामप्रसाद जैसे तो यहाँ
जानवर थे।

इसलिए मित्रो हमेशा अपने
भारतीय होने पे गर्व करो।
पढ़कर सीना चौड़ा हुआ हो
तो शेयर कर देना।
                जय महाराणा
                  जय मेवाड़
              जय राजपुताना

पंडित जवाहरलाल नेहरु.


*पंडित जवाहरलाल नेहरु.*

*जन्म*
*14 नवम्बर 1889*

*जन्म स्थान*
*इलाहबाद उत्तरप्रदेश*

*माता-पिता*
*स्वरूपरानी नेहरु, मोतीलाल नेहरु*

*पत्नी*
*कमला नेहरु*

*बच्चे*
*इंदिरा गाँधी*
  
*म्रत्यु*
*27 मई 1964*
*नई दिल्ली*

*राष्ट्रीयता* 
*भारतीय*

*उपलब्धि*
*भारत के प्रथम प्रधानमंत्री*

*भारत के महान नेता पंडित जवाहरलाल नेहरु भारत के पहले प्रधानमंत्री थे* वो एक ऐसे नेता थे जो स्वतंत्रता से पहले और बाद में भारतीय राजनीती के मुख्य केंद्र बिंदु थे. वे *भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी* के सहायक के तौर पर *भारतीय स्वतंत्रता अभियान के मुख्य नेता थे* जो अंत तक भारत को स्वतंत्र बनाने के लिए लड़ते रहे और स्वतंत्रता के बाद भी *1964 में अपनी मृत्यु तक देश की सेवा की.* उन्हें *आधुनिक भारत का रचयिता* माना जाता था. पंडित संप्रदाय से होने के कारण उन्हें पंडित नेहरु भी कहा जाता था. जबकि *बच्चो से उनके लगाव के कारण बच्चे उन्हें “चाचा नेहरु” के नाम से जानते थे.*

*जवाहरलाल नेहरु का जन्म :-*

*जवाहरलाल नेहरु जी का जन्म 14 नवम्बर, 1889 को इलाहाबाद* के एक अतिसंपन्न परिवार में हुआ था। वे *महान वकील और राष्ट्रिय समाजसेवी मोतीलाल नेहरू के एकलौते बेटा थे* जो जटिल से जटिल मामलों को भी बङी सरलता से हल कर देते थे। *उनकी माँ का नाम स्वरूप रानी नेहरू था।* इनके अलावा *मोती लाल नेहरू की तीन पुत्रियां थीं।* नेहरू कश्मीरी वंश के *सारस्वत ब्राह्मण* थे। मोतीलाल जी के घर में कभी भी किसी प्रकार की घार्मिक कट्टरता और भेद-भाव नही बरता जाता था। जवाहरलाल बालसुलभ जिज्ञासा और कौतूहल से धार्मिक रस्मों और त्योहारों को देखा करते थे। नेहरु परिवार में *कश्मीरी त्योहार* भी बङे धूम-धाम से मनाया जाता था। जवाहर को *मुस्लिम त्योहार* भी बहुत अच्छे लगते थे। धार्मिक रस्मों और आकर्षण के बावजूद जवाहर के मन में *धार्मिक भावनाएं विशवास* न जगा सकी थीं। बचपन में जवाहर का अधिक समय उनके यहाँ के मुंशी मुबारक अली के साथ गुजरता था। *मुंशी जी गदर के सूरमाओं और तात्याटोपे तथा रानी लक्ष्मीबाई*की कहानियाँ सुनाया करते थे। जवाहर को वे अलिफलैला की एवं और दूसरी कहानियाँ भी सुनाते थे।

*जवाहरलाल नेहरु का बचपन :-*

*नेहरू* बचपन से ही बहुत *उदारवादी थे* एक बार जवाहरलाल ने अपने पिता से पूछा कि हम एक वर्ष में एक से ज्यादा बार जन्मदिन क्यों नही मनाते ताकि अधिक से अधिक लोगों की सहायता हो सके। बालक जवाहर का ये प्रश्न उनकी उदारता को दर्शाता है। *बच्चों के प्रिय चाचा नेहरु का जन्मदिवस बाल दिवस के रूप में हर वर्ष मनाया जाता है।* नेहरू जी का जन्मदिन उनके पहले जन्मदिन से ही एक अलग अंदाज में मनाया जाता था। *जन्म के बाद से लगातार हर वर्ष 14 नवम्बर के दिन उन्हें सुबह सवेरे तराजू में तौला जाता था।* तराजू में बाट की जगह गेँहू या चावल के बोरे रखे जाते थे। तौलने की यह क्रिया कई बार होती थी। कभी मिठाई तो कभी कपङे बाट की जगह रखे जाते थे। चावल, गेँहु, मिठाई एवं कपङे गरीबों में बाँट दिये जाते थे। बढती उम्र के साथ बालक जवाहर को इससे बहुत खुशी होती थी।

*भारत की स्वतंत्रता के प्रति उनका लगाव बचपन से ही था।* एक बार की बात है कि ”मोतीलाल नेहरु अपने घर में *पिंजरे में तोता पाल रखे थे।* एक दिन जवाहर ने तोते को पिंजरे से आज़ाद कर दिया। मोतीलाल को तोता बहुत प्रिय था। उसकी देखभाल एक नौकर करता था। नौकर ने यह बात मोतीलाल को बता दी। मोतीलाल ने जवाहर से पूछा, ‘तुमने तोता क्यों उड़ा दिया। जवाहर ने कहा, ‘पिताजी पूरे *देश की जनता आज़ादी चाह रही है। तोता भी आज़ादी चाह रहा था, सो मैंने उसे आज़ाद कर दिया।’*

*जवाहरलाल नेहरु का शिक्षा और प्रधानमंत्री का सफ़र :-*

*जवाहरलाल नेहरू* ने दुनिया के कुछ बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी। *उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हैरो से और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज, लंदन से पूरी की थी।* इसके बाद उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की। जहा उन्होंने ने *वकीली का प्रशिक्षण लिया. और 1912 में भारत वापिस आने के बाद उन्हें अल्लाहाबाद उच्च न्यायालय में शामिल किया गया.* पिता के मार्गदर्शन में उनकी वकालत की तारीफ होने लगी थी। उनके जिरहों में सजीवता और अभियोग पक्ष की भूलों को पकङने की योग्यता साफ दिखाई देने लगी थी। जब जवाहर को एक मुवक्किल से फीस के रूप में 500 रूपये का नोट मिला तो मोतीलाल नेहरु बेटे की प्रगति पर बहुत खुश हुए। वकालत अच्छी चल रही थी फिर भी जवाहर का मन इस पेशे से खुश नही था उनका मन तो देशप्रेम की बातों में रमने लगा था। कुछ समय पश्चात जवाहर देश भक्ति के रंग में पूरी तरह से रंग गये।

*1917 में जवाहर लाल नेहरू होम रुल लीग‎ में शामिल हो गए।* राजनीति में उनकी असली दीक्षा दो साल बाद *1919 में हुई जब वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए। उस समय महात्मा गांधी ने रॉलेट अधिनियम*के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था।नेहरू, *महात्मा गांधीके सक्रिय लेकिन शांतिपूर्ण, सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति खासे आकर्षित हुए* नेहरू ने महात्मा गांधी के उपदेशों के अनुसार अपने परिवार को भी ढाल लिया। जवाहरलाल और मोतीलाल नेहरू ने पश्चिमी कपडों और महंगी संपत्ति का त्याग कर दिया। वे अब एक *खादी कुर्ता और गाँधी टोपी पहनने* लगे। *जवाहर लाल नेहरू ने 1920-22 में असहयोग आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया* और इस *दौरान पहली बार गिरफ्तार किए गए।* कुछ महीनों के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। *जवाहरलाल नेहरू 1924 में इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए* और उन्होंने शहर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में दो वर्ष तक सेवा की। *मातृ-भूमि की स्वतंत्रता हेतु अक्सर अंग्रेजों द्वारा जेल भेज दिये जाते थे* ऐसे ही एक अवसर पर *1942 से 1946 के दौरान जब वे अहमदनगर की जेल में थे वहाँ उन्होने ‘भारत एक खोज’ पुस्तक लिखी थी।* जिसमें उन्होने *भारत के गौरव पूर्ण इतिहास* का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है।

*दिसम्बर 1929 में, कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में आयोजित किया गया* जिसमें जवाहरलाल नेहरू *कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष* चुने गए। इसी सत्र के दौरान एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें *‘पूर्ण स्वराज्य’* की मांग की गई। *26 जनवरी, 1930 को लाहौर में जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत का झंडा फहराया। जवाहर लाल नेहरु 1930 और 1940 के दशक में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे।*

*सन् 1947 में भारत को आजादी मिलने पर वे स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।* संसदीय सरकार की स्थापना और विदेशी मामलों में ‘गुटनिरपेक्ष’ नीतियों की शुरूवात जवाहरलाल नेहरु द्वारा  हुई। पंचायती राज के हिमायती नेहरु जी का कहना था किः-

*“अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से, आज का बड़ा सवाल विश्वशान्ति का है।* आज हमारे लिए यही विकल्प है कि हम दुनिया को उसके अपने रूप में ही स्वीकार करें। हम देश को इस बात की स्वतन्त्रता देते रहे कि वह अपने ढंग से अपना विकास करे और दूसरों से सीखे, लेकिन दूसरे उस पर अपनी कोई चीज़ नहीं थोपें। निश्चय ही इसके लिए एक नई मानसिक विधा चाहिए। *पंचशील या पाँच सिद्धान्त यही विधा बताते हैं।“*

*प्रधानमंत्री* बनने के बाद ही, उन्होंने नविन भारत के अपने स्वप्न को साकार करने के प्रयास किये. 1950 में जब भारतीय कानून के नियम बनाये गये, तब उन्होंने भारत का आर्थिक, राजनितिक और सामाजिक विकास शुरू किया. विशेषतः उन्होंने भारत को एकतंत्र से लोकतंत्र में बदलने की कोशिश की, जिसमे बहोत सारी पार्टिया हो जो समाज का विकास करने का काम करे. तभी *भारत एक लोकशाही राष्ट्र बन पायेगा. और विदेश निति में जब वे दक्षिण एशिया में भारत का नेतृत्व कर रहे थे* तब भारत के विश्व विकास में अभिनव को दर्शाया.

*जवाहरलाल नेहरु – क़िताबे :-*

*आत्मचरित्र (1936) (Autobiography)*

*दुनिया के इतिहास का ओझरता दर्शन (1939) (Glimpses Of World History).*

*भारत की खोज (1946) (The Discovery Of India) आदी।*

*जवाहरलाल नेहरु– पुरस्कार :-*

*1955 में भारत का सर्वोच्च नागरी सम्मान ‘भारत रत्न’ पंडित नेहरु को देकर उन्हें सम्मानित किया गया।*

*जवाहरलाल नेहरू– विशेषता :-*

*आधुनिक भारत के शिल्पकार।*

*पंडित नेहरु का जन्मदिन 14 नव्हंबर ये ‘बालक दिन’ के रूप में मनाया जाता है।*

        

*एक नजर में जवाहरलाल नेहरु :*

        

*1912 में इग्लंड से भारत* आने के बाद जवाहरलाल नेहरु इन्होंने अपने पिताजी ने ज्यूनिअर बनकर *इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकील* का व्यवसाय शुरु किया।*

1916 में राजनीती का कार्य करने के उद्देश से पंडित नेहरू ने गांधीजी से मुलाकात की। देश की *राजनीती में भारतीय स्वतंत्र आंदोलन में हिस्सा लिया* जाये, ऐसा वो चाहते थे।

*1916 में उन्होंने डॉ.अॅनी बेझंट इनके होमरूल लीग में प्रवेश किया।1918 में वो इस संघटने के सेक्रेटरी बने। उसके साथ भारतीय राष्ट्रीय कॉग्रेस के कार्य में भी उन्होंने भाग लिया।*

1920 में महात्मा गांधी ने शुरु किये हुये *असहयोग आंदोलन में नेहरूजी शामील हुये*। इस कारण उन्हें छह साल की सजा हुयी।

*1922-23 में जवाहरलाल नेहरूजी इलाहाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गये।*

1927 में नेहारुजी ने सोव्हिएल युनियन से मुलाकात की। समाजवाद के प्रयोग से वो प्रभावित हुये और उन्ही विचारोकी ओर खीचे चले गए।

*1929 में लाहोर में राष्ट्रिय कॉग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गये*और इसी अधिवेशन में और इसी अधिवेशन कॉग्रेस ने पुरे स्वातंत्र्य की मांग की इसी अधिवेशन भारतको स्वतंत्र बनानेका निर्णय लिया गया और *‘संपूर्ण स्वातंत्र्य’* का संकल्प पास किया गया।

*यह फैसला पुरे भारत मे पहुचाने के लिए 26 जनवरी 1930 यह दिन राष्ट्रीय सभा में स्थिर किया गया।* हर ग्राम में बड़ी सभाओका आयोजन किया गया। जनता ने स्वातंत्र्य के लिये लढ़नेकी शपथ ली *इसी कारन 26 जनवरी यह दिन विशेष माना जाता है।*

*1930 में महात्मा गांधीजीने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु किया जिसमे नेहरुजीका शामील होना विशेष दर्जा रखता था।*

1937में कॉग्रेस ने प्रातीय कानून बोर्ड चुनाव लढ़नेका फैसला लिया और बहुत बढ़िया यश संपादन किया जिसका प्रचारक भार नेहरुजी पर था।

1942 के ‘चले जाव’ आंदोलनको भारतीय स्वातंत्र्य आंदोलन में विशेष दर्जा है। कॉंग्रेस ने ये आंदोलन शुरु करना चाहिये इस लिये गांधीजी के मन का तैयार करने के लिए पंडित नेहरु आगे आये। उसके बाद तुरंत सरकारने उन्हें गिरफ्तार करके अहमदनगर के जैल कैद किया। वही उन्होंने *‘ऑफ इंडिया’*ये ग्रंथ लिखा।

*1946 में स्थापन हुये भारत के अंतरिम सरकार ने पंतप्रधान के रूप नेहरु को चुना।* भारत स्वतंत्र होने के बाद वों स्वतंत्र भारत के पहले पंतप्रधान बने। जीवन के आखीर तक वो इस पद पर रहे। *1950 में पंडित नेहरु ने नियोजन आयोग की स्थापना की।*

*अनमोल वचन *

*जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य पूरा करते हैं।*

*जो पुस्तके तुम्हें सबसे अधिक सोचने के लिए विवश करती है वे ही तुम्हारी सबसे बड़ी सहायक है।*

*हिंदी एक जानदार भाषा है। यह जितनी बढ़ेगी, देश को उतना ही लाभ होगा।*

*बच्चों की सबसे बड़ी दौलत प्यार है।*

*सही कार्य अपने आप जन्म नहीं लेता, इसे विचारों की कोख में सवारना पड़ता है।*

*सबसे उत्तम विजय प्रेम की है,जो सदा के लिए विजेता का हृदय बांधती है।*

*ज्यो-ज्यों मनुष्य बुड्ढा होता है, त्यों-त्यों जीवन और मृत्यु से भय बढ़ता है।*

*प्रकृति ही जीवन है*

*बुराई को ना रोकने से वह बढ़ती है, बुराई को बर्दाश्त कर लेने से यह तमाम क्रियाओं में जहर फैला देती है।*

*निरोग होना परम लाभ है, संतोष परम धन है ,विश्वास सबसे बड़ा बंधु है, निवारण परम सुख है।*

* विश्व का भविष्य विज्ञान की प्रकृति पर अधिकाधिक निर्भर होता जा रहा है, किंतु अध्यातम के मार्गदर्शन बिना मानवता प्रलयकारी दुर्घटना की शिकार हो सकती है।*

* मनुष्य देवताओं के सामने हार नहीं मानता और ना ही वह मौत के सामने सिर झुकाता है, जब कभी वह हार मानता है तो अपनी इच्छाशक्ति की कमजोरी की वजह से ही मानता है।*

*आदर्श कर्म*

*श्रेष्ठतम मार्ग खोजने की प्रतीक्षा के बजाए हम गलत रास्ते से बचते रहें और बेहतर रास्ते को अपनाते रहे*

* केवल कर्महीन हीं ऐसे होते हैं ,जो भाग्य को कोसते हैं और जिनके पास शिकायतों का बाहुल्य होता है।*

*देश प्रेम/साहस*

*कोई भी देश या जाति महानता को प्राप्त नहीं हो सकती, जब कि उसमें माहनता का थोड़ा बहुत माददा न हो*

* विजय हमारे साथ में नहीं होती,लेकिन साहस और प्रयास से हम अक्सर मिल जाती है ,लेकिन जो कायर है और नतीजों से डरते हैं उन्हें तो विजय कभी नसीब में ही नहीं हो सकती।*

* मृत्यु से नया जीवन मिलता है। जो व्यक्ति और राष्ट्र के लिए मरना नहीं जानते ,वे जिना भी नहीं जानते।*

* आपत्तियां में आत्मज्ञान करती है।वे हमें दिखा देती है कि हम किस मिट्टी में बने हैं*

*संस्कृति:सभ्यता*

*संस्कृति की चाहे कोई भी परिभाषा क्यों न हो,किंतु उसे व्यक्ति समूह अथवा राष्ट्र की सीमाओं में बांधना मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है।*

* संस्कृति शारीरिक या मानसिक शक्तियों का प्रशिक्षण,दृढहीकरण,विकास या उससे उत्पन्न आस्था है।*

*शांति*

*यदि दूसरे देशों में शांति न हो, किसी देश में शांति हो सकती । इस तंग और छोटी हानि वाली दुनिया में युद्ध, शांति और स्वतंत्रता और अविभाज्य हो रही है*

* यदि दुनिया के विभिन्न भागों में बहुत बड़ी संख्या में लोग गरीबी और  दिनता से घिरे रहेंगे तो शांति की कोई गारंटी नहीं हो सकती।*

* आदमी धर्म के लिए झगड़ेगा, उसके लिए लिखेगा, उसके लिए मरेगा सब कुछ करेगा, पर उसके लिए जिएगा नहीं*

*विचार धारा*

*बहुत खून-खराबे के बाद पुराने धार्मिक झगड़े खत्म हुए और सहनशीलता पैदा हुई। फिर आर्थिक और सिद्धांतिक झगड़े क्यों नहीं खत्म हो सकते,हर एक देश को आजादी होनी चाहिए कि यह अपने ढंग से विकास करें। जो कुछ किसी और से सीखें,अपने ढंग से सीखे। उस पर कोई चीज थोपी न जाए ,इस तरह की विचारधारा दूसरे को प्रभावित करेगी।*

*इतिहास*

*क्रांति का समय न सिर्फ चरित्र,साहस, सहनशक्ति आत्मत्याग औऱ वर्ग की अनुभूति की कसौटी होती है,बल्कि वह अलग अलग वर्गों और समुदायों के बीच कुछ असली संघर्ष को जाहिर कर देता है जो सुंदर और अस्पष्ट जुमलों के नीचे ढका हुआ होता है।*

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जयनारायण व्यास Essay on jainarain vyas

पूरा नाम:-*जयनारायण व्यास*
जन्म:-18 फरवरी, 1899
जन्म भूमि:- जोधपुर
मृत्यु:-14 मार्च, 1963
मृत्यु स्थान:-दिल्ली
पत्नी:-गौरजा देवी व्यास
संतान:-एक पुत्र और तीन पुत्रियाँ

पार्टी:-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पद:-राजस्थान के तीसरे एवं पाँचवें मुख्यमंत्री
कार्य काल:-26 अप्रैल 1951 से 3 मार्च 1952 तक और 1 नवम्बर 1952 से 12 नवम्बर 1954 तक

विशेष योगदान:-व्यास जी ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सबसे  पहले सामन्तशाही के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी।

वर्ष 1927 ई. में जयनारायण व्यास ‘तरुण राजस्थान’ पत्र के प्रधान सम्पादक बने थे।

जीवन परिचय
जयनारायण व्यास के समय देश दासता की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। जयनारायण व्यास राजस्थान के प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानियों में से एक थे। वे ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सबसे पहले सामन्तशाही के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और 'जागीरदारी प्रथा' की समाप्ति के साथ रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना पर बल दिया।
सम्पादन कार्य
वर्ष 1927 ई. में जयनारायण व्यास ‘तरुण राजस्थान’ पत्र के प्रधान सम्पादक बने और 1936 ई. में उन्होंने बम्बई से ‘अखण्ड भारत’ नामक दैनिक समाचार पत्र निकालना प्रारम्भ किया।
जेल यात्रा
देश को आज़ादी दिलाने के लिए जयनारायण व्यास ने क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया और कई बार जेल की यात्राएँ कीं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।
मुख्यमंत्री
1948 ई. में जयनारायण व्यास 'जोधपुर प्रजामण्डल' के प्रधानमंत्री बनाये गये।
1956 से 1957 तक वे 'प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी' के अध्यक्ष भी रहे। 1951 से 1954 तक वे राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे।
निधन
14 मार्च, 1963 को दिल्ली में जयनारायण व्यास का निधन हुआ। इनके सम्मान में इनकी जन्म स्थली जोधपुर में 'जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय' आज भी संचालित है।

मारवाड़ लोक परिषद की स्थापना

1937 को बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह व्यास जी की ईमानदारी से अत्यन्त प्रभावित हुए । गंगा सिंह ने जोधपुर के प्रधानमंत्री सर फिल्ड को पत्र लिखा:-
*नि:सन्देह श्री व्यास राजाशाही की आलोचना करने मैं तीखे रहे है ,लेकिन वे पक्के ईमानदार हैं। उनको कोई भ्रष्ट नहि कर सकता है । वे अपनी राजनीतिक मान्यताओ के प्रति सत्यनिश्ठ है। *
व्यास जी को पहले जोधपुर जाने की मनाही थी । शायद इस पत्र से फिल्ड पर प्रभाव पड़ा । व्यास जी ने जोधपुर पहुँचते ही आंदोलन की भागडोर अपने हाथ मैं ले ली ।
वर्ष 1939 मैं लोक परिषद की शक्ति और गति मैं अत्यधिक विस्तार हुआ ।
इसी समय एक लम्बे विचार - विमर्श के बाद जोधपुर मैं केंद्रीय सलाहकार बोर्ड की घोषणा 2 feb 1939 को की गई।
व्यास जी को ग़ैर सरकारी प्रतिनिधि के रूप मैं मनोनीत किया गया ।

1939 मैं जोधपुर मैं भयंकर अकाल पड़ा।लोक परिषद के राहत कार्य से जनता प्रभावित हुई और उन्होंने लोक परिषद की सदस्यता ग्रहण करना शुरू कर दी ।
इससे जागीरदार और शासक दोनो ही इस जैन संस्था ' लोक परिषद ' के कट्टर शत्रु बन गए ।

इसमें व्यास जी को गिरफ़्तार कर लिया गया ।

जून1940 मैं कुछ शर्तों के साथ व्यास जी रिहा हुए। जनता ने उनका अपूर्व स्वागत किया ।
जून 1940 मैं व्यास को मारवाड़ लोकपरिषद की समस्त शाखाओं का अध्यक्ष चुना गया । व्यास ने राज्य सरकार से पुन : ज़िम्मेदार हुकूमत की माँग की ।

वे राजस्थान के प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानियों में से एक थे।

वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सबसे पहले सामन्तशाही के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और जागीदारी प्रथा की समाप्ति के साथ रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना पर बल दिया।

वे 1927 ई. में ‘तरुण राजस्थान’ पत्र के प्रधान सम्पादक बने और 1936 ई. उन्होंने बम्बई से ‘अखण्ड भारत’ नामक दैनिक समाचार-पत्र निकालना प्रारम्भ किया।

जयनारायण व्यास ने कई बार जेल की यात्राएँ कीं।

नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

1948 ई. में वे जोधपुर प्रजामण्डल के प्रधानमंत्री बनाये गये।

1956 से 1957 तक जयनारायण व्यास प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे।
1951 से 1954 तक वे राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे।
14 मार्च, 1963 को दिल्ली में इनका निधन हो गया।
इनके सम्मान में इनकी जन्म स्थली जोधपुर में 'जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय' संचालित है।