Wednesday 31 May 2017

ईश्वर सत्य है

1970 के समय तिरुवनंतपुरम में समुद्र
के पास एक बुजुर्ग भगवद्गीता पढ़ रहे
थे तभी एक नास्तिक और होनहार नौजवान
उनके पास आकर बैठा!
उसने उन पर कटाक्ष किया कि
लोग भी कितने मूर्ख है विज्ञान के युग
मे गीता जैसी ओल्ड फैशन्ड बुक पढ़ रहे है!
उसने उन सज्जन से कहा
कि आप यदि यही समय विज्ञान
को दे देते तो अब तक देश ना जाने कहाँ
पहुँच चुका होता!
उन सज्जन ने उस नौजवान से
परिचय पूछा तो उसने बताया कि वो
कोलकाता से है!
और विज्ञान की पढ़ाई की है अब यहाँ
भाभा परमाणु अनुसंधान में अपना कैरियर
बनाने आया है!
आगे उसने कहा कि आप
भी थोड़ा ध्यान वैज्ञानिक कार्यो में लगाये
भगवद्गीता पढ़ते रहने से आप कुछ
हासिल नही कर सकोगे!
सज्जन मुस्कुराते हुए जाने के
लिये उठे, उनका उठना था की
4 सुरक्षाकर्मी वहाँ उनके आसपास
आ गए!
आगे ड्राइवर ने कार लगा दी जिस
पर लाल बत्ती लगी थी!
लड़का घबराया और उसने उनसे पूछा
आप कौन है???
उन सज्जन ने अपना नाम बताया
'विक्रम साराभाई'!
जिस भाभा परमाणु अनुसंधान में लड़का
अपना कैरियर बनाने आया था उसके
अध्यक्ष वही थे!
उस समय विक्रम साराभाई
के नाम पर 13 अनुसंधान केंद्र थे!
साथ ही साराभाई को तत्कालीन
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने परमाणु
योजना का अध्यक्ष भी नियुक्त किया था!
अब शर्मसार होने की बारी
लड़के की थी वो साराभाई के चरणों मे रोते
हुए गिर पड़ा!
तब साराभाई ने बहुत अच्छी बात कही!
उन्होंने कहा कि
"हर निर्माण के पीछे निर्माणकर्ता अवश्य है।
इसलिए फर्क नही पड़ता ये महाभारत है
या आज का भारत, ईश्वर को कभी मत भूलो!"
आज नास्तिक गण विज्ञान का नाम
लेकर कितना नाच ले!
मगर इतिहास गवाह है कि विज्ञान
ईश्वर को मानने वाले आस्तिकों ने ही रचा है!
ईश्वर सत्य है!
इसे झुठलाया नही जा सकता!

Letter from Rabindranath Tagore to Lord Chelmsford, Viceroy of India

गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने आज ही के दिन जलियांवाला बाग कांड के विरोध में अपनी सर की उपाधि लौटाई

और सर की उपाधि लौटाते हुए वायसराय को लिखा टैगोर का वह ऐतिहासिक पत्र भी
*********************************
Letter from Rabindranath Tagore to Lord Chelmsford, Viceroy of India

Calcutta [India]
31 May 1919

Your Excellency,

The enormity of the measures taken by the Government in the Punjab for quelling some local disturbances has, with a rude shock, revealed to our minds the helplessness of our position as British subjects in India. The disproportionate severity of the punishments inflicted upon the unfortunate people and the methods of carrying them out, we are convinced, are without parallel in the history of civilised governments, barring some conspicuous exceptions, recent and remote. Considering that such treatment has been meted out to a population, disarmed and resourceless, by a power which has the most terribly efficient organisation for destruction of human lives, we must strongly assert that it can claim no political expediency, far less moral justification. The accounts of the insults and sufferings by our brothers in Punjab have trickled through the gagged silence, reaching every corner of India, and the universal agony of indignation roused in the hearts of our people has been ignored by our rulers—possibly congratulating themselves for what they imagine as salutary lessons. This callousness has been praised by most of the Anglo-Indian papers, which have in some cases gone to the brutal length of making fun of our sufferings, without receiving the least check from the same authority—relentlessly careful in smothering every cry of pain and expression of judgement from the organs representing the sufferers. Knowing that our appeals have been in vain and that the passion of vengeance is blinding the nobler vision of statesmanship in our Government, which could so easily afford to be magnanimous as befitting its physical strength and moral tradition, the very least that I can do for my country is to take all consequences upon myself in giving voice to the protest of the millions of my countrymen, surprised into a dumb anguish of terror. The time has come when badges of honour make our shame glaring in the incongruous context of humiliation, and I for my part wish to stand, shorn of all special distinctions, by the side of those of my countrymen, who, for their so-called insignificance, are liable to suffer degradation not fit for human beings.

These are the reasons which have painfully compelled me to ask Your Excellency, with due reference and regret, to relieve me of my title of Knighthood, which I had the honour to accept from His Majesty the King at the hands of your predecessor, for whose nobleness of heart I still entertain great admiration.

Yours faithfully,
Rabindranath Tagore

रोचक जानकारी


              *रोचक जानकारी*

1. विश्व का सबसे अमीर देश स्विटजरलैंड है।
2. सऊदी अरब मेँ एक भी नदी नही है।
3. विश्व का सबसे दानी आदमी अमेरिका का राकफेलर है जिसने अपने जीवन मेँ सार्वजनिक हित के लिए 75 अरब रुपए दान मेँ दे दिए।
4. सबसे महँगी वस्तु यूरेनियम है।
5. दक्षिण ऑस्ट्रेलिया मेँ आयार्स नामक पहाडी
प्रतिदिन अपना रंग बदलती है।
6. विश्व मेँ रविवार की छुट्टी 1843 से शुरु हुई थी।
7. सारे संसार मेँ कुल मिलाकर 2792 भाषाएँ हैं।
8. फ्रांस ऐसा देश है जहां मच्छर नहीं होते हैं।
9. दक्षिण अफ्रिक में कोबरा नामक वृक्ष के पास इंसान के जाते ही उसकी डालियाँ उसे जकड लेती है और तब तक नही छोड़ती जब तक वो प्राण ना त्याग दे ।
10. नार्वे देश में सूरज आधी रात में चमकता हैं।
..............
जानकारी रोके नहीं दूसरों को दे।
ज्ञान बाटने से बढ़ता है!
,
विश्व कासामान्य ज्ञान

विश्व में भारत के अलावा 15 अगस्त को ही स्वतन्त्रता दिवस और किस देश में मनाया जाता है?
:- कोरिया में

विश्व का ऐसा कौन सा देश है जो आज तक किसी का गुलाम नहीं हुआ?
:- नेपाल

  yy पुराना समाचार पत्र कौन सा है?
:- स्वीडन आफिशियल जनरल (1645 में प्रकाशित)

वि विश्व में कुल कितने देश हैं?
:- 353

विश्व में ऐसा कौन सा देश है जहाँ के डाक टिकट पर उस देश का नाम नहीं होता?
:- ग्रेट ब्रिटेन

विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद कौन सी है?
:- अलमल्विया (इराक)

विश्व का किस देश में कोई भी मंदिर-मस्जिद नहीं है?
:- सउदी अरब

विश्व का सबसे बड़ा महासागर कौन सा है?
:- प्रशांत महासागर

विश्व में सबसे बड़ी झील कौन सी है?
:- केस्पो यनसी (रूस में)

विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप कौन सा है?
:- एशिया

विश्व की सबसे बड़ी दीवार कौन सी है?
:- ग्रेट वाल ऑफ़ चायना (चीन की दीवार)

विश्व में सबसे कठोर कानून वाला देश कौन सा है?
:- सउदी अरब

विश्व के किस देश में सफेद हाथी पाये जाते हैं?
:- थाईलैंड

विश्व में सबसे अधिक वेतन किसे मिलता है?
:- अमेरिका के राष्टपति को

विश्व में किस देश के राष्टपति का कार्यकाल एक साल का होता है?
:- स्विट्जरलैंड

विश्व की सबसे बड़ी नदी कौन सी है?
:- नील नदी(6648 कि.मी.)

विश्व का सबसे बड़ा रेगिस्तान कौन सा है?
:- सहारा (84,00,000 वर्ग कि.मी., अफ्रीका में)

विश्व की सबसे मँहगी वस्तु कौन सी है?
:- यूरेनियम

विश्व की सबसे प्राचीन भाषा कौन सी है?
:- संस्कृत

शाखाओं की संख्या की दृष्टि से विश्व का सबसे बड़ा बैंक कौन सा है?
:- भारतीय स्टेट बैंक

विश्व का ऐसा कौन सा देश है जिसने कभी किसी युद्ध में भाग नहीं लिया?
:- स्विट्जरलैंड

विश्व का का कौन सा ऐसा देश है जिसके एक भाग में शाम और एक भाग में दिन होता है?
:- रूस

विश्व का सबसे बड़ा एअरपोर्ट कौन सा है?
:- टेक्सास का फोर्थ बर्थ (अमेरिका में)

विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर कौन सा है?
:- टोकियो

विश्व की लम्बी नहर कौन सी है?
:- स्वेज नहर (168 कि.मी. मिस्र में)

विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य कौन सा है?
:- महाभारत.

Forwarded msg
कुछ रोचक जानकारी क्या आपको पता है ?

1. चीनी को जब चोट पर लगाया जाता है, दर्द तुरंत कम हो जाता है...
2. जरूरत से ज्यादा टेंशन आपके दिमाग को कुछ समय के लिए बंद कर सकती है...
3. 92% लोग सिर्फ हस देते हैं जब उन्हे सामने वाले की बात समझ नही आती...
4. बतक अपने आधे दिमाग को सुला सकती हैंजबकि उनका आधा दिमाग जगा रहता....
5. कोई भी अपने आप को सांस रोककर नही मार सकता...
6. स्टडी के अनुसार : होशियार लोग ज्यादा तर अपने आप से बातें करते हैं...
7. सुबह एक कप चाय की बजाए एक गिलास ठंडा पानी आपकी नींद जल्दी खोल देता है...
8. जुराब पहन कर सोने वाले लोग रात को बहुत कम बार जागते हैं या बिल्कुल नही जागते...
9. फेसबुक बनाने वाले मार्क जुकरबर्ग के पास कोई कालेज डिगरी नही है...
10. आपका दिमाग एक भी चेहरा अपने आप नही बना सकता आप जो भी चेहरे सपनों में देखते हैं वो जिदंगी में कभी ना कभी आपके द्वारा देखे जा चुके होते हैं...
11. अगर कोई आप की तरफ घूर रहा हो तो आप को खुद एहसास हो जाता है चाहे आप नींद में ही क्यों ना हो...
12. दुनिया में सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला पासवर्ड 123456 है.....
13. 85% लोग सोने से पहले वो सब सोचते हैं जो वो अपनी जिंदगी में करना चाहते हैं...
14. खुश रहने वालों की बजाए परेशान रहने वाले लोग ज्यादा पैसे खर्च करते हैं...
15. माँ अपने बच्चे के भार का तकरीबन सही अदांजा लगा सकती है जबकि बाप उसकी लम्बाई का...
16. पढना और सपने लेना हमारे दिमाग के अलग-अलग भागों की क्रिया है इसी लिए हम सपने में पढ नही पाते...
17. अगर एक चींटी का आकार एक आदमी के बराबर हो तो वो कार से दुगुनी तेजी से दौडेगी...
18. आप सोचना बंद नही कर सकते.....
19. चींटीयाँ कभी नही सोती...
20. हाथी ही एक एसा जानवर है जो कूद नही सकता...
21. जीभ हमारे शरीर की सबसे मजबूत मासपेशी है...
22. नील आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रमा पर अपना बायां पाँव पहलेरखा था उस समय उसका दिल 1 मिनट में 156 बार धडक रहा था...
23. पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण पर्वतों का 15,000मीटर से ऊँचा होना संभव नही है...
23. शहद हजारों सालों तक खराब नही होता..
24. समुंद्री केकडे का दिल उसके सिर में होता है...
25. कुछ कीडे भोजन ना मिलने पर खुद को ही खा जाते है....
26. छींकते वक्त दिल की धडकन 1 मिली सेकेंड के लिए रूक जाती है...
27. लगातार 11 दिन से अधिक जागना असंभव है...
28. हमारे शरीर में इतना लोहा होता है कि उससे 1 इंच लंबी कील बनाई जा सकती है.....
29. बिल गेट्स 1 सेकेंड में करीब 12,000 रूपए कमाते हैं...
30. आप को कभी भी ये याद नही रहेगा कि आपका सपना कहां से शुरू हुआ था...
31. हर सेकेंड 100 बार आसमानी बिजली धरती पर गिरती है...
32. कंगारू उल्टा नही चल सकते...
33. इंटरनेट पर 80% ट्रैफिक सर्च इंजन से आती है...
34. एक गिलहरी की उमर,, 9 साल होती है...
35. हमारे हर रोज 200 बाल झडते हैं...
36. हमारा बांया पांव हमारे दांये पांव से बडा होता हैं...
37. गिलहरी का एक दांत  हमेशा बढता रहता है....
38. दुनिया के 100 सबसे अमीर आदमी एक साल में इतना कमा लेते हैं जिससे दुनिया
की गरीबी 4 बार खत्म की जा सकती है...
39. एक शुतुरमुर्ग की आँखे उसके दिमाग से बडी होती है...
40. चमगादड गुफा से निकलकर हमेशा बांई तरफ मुडती है...
41. ऊँट के दूध की दही नही बन सकता...
42. एक काॅकरोच सिर कटने के बाद भी कई दिन तक जिवित रह सकता है...
43. कोका कोला का असली रंग हरा था...
44. लाइटर का अविष्कार माचिस से पहले हुआ था...
45. रूपए कागज से नहीं बल्कि कपास से बनते है...
46. मनुष्य के दिमाग में 80% पानी होता है.
47. मनुष्य का खून 21 दिन तक स्टोर किया जा सकता है...
48. फिंगर प्रिंट की तरह मनुष्य की जीभ के निशान भी अलग-अलग होते हैं...
?

आप सबसे निवेदन है की
चुटकले भेजने की बजाय यह
सन्देश सबको भेजे ताकि सब लोग
देख सके ।

Thursday 25 May 2017

नाक कान छेदना और खतना का विज्ञान

|| नाक कान छेदना और खतना का विज्ञान ||

भारत में बहुत पुरानी ग्रामीण परंपरा है। अभी भी कुछ लोग गांव में मिल जाएंगे। अगर तुम्हें कभी कोई आदमी मिले जिसका नाम हो कनछेदी लाल, या जिसका नाम हो नत्थूलाल, तो तुम पूछना कि यह नाम क्यों रखा गया? जिन घरों में बच्चे मर जाते हैं, दो चार बच्चे हुए और मर गए, तो बहुत पुरानी परंपरा है कि फिर जो बच्चा पैदा हो, तत्क्षण या तो उसकी नाक छेद दो या कान छेद दो। अगर नाक छेदा तो उसका नाम नत्थूलाल, कान छेदा तो उसका नाम कनछेदी लाल।

और यह बात बड़ी अनुभव की है कि फिर नाक या कान छेदने के बाद बच्चे नहीं मरते। उनकी जीवन-ऊर्जा में कुछ बुनियादी अंतर आ जाता है। बच्चा बच जाता है। यह हजारों सालों के अनुभव के बाद लोगों ने धीरे-धीरे प्रयोग खोजा है।

अब तो इस पर रूस में बड़ी खोज हुई है। और किरलियान फोटोग्राफी ने बड़े महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले हैं, कि मनुष्य के शरीर में जो विद्युत का प्रवाह है, सारा खेल स्वास्थ्य का, बीमारी का, जन्म का, मरण का, उस विद्युत के प्रवाह पर निर्भर है। और उस प्रवाह को कुछ बिंदुओं से बदला जा सकता है। उस प्रवाह के मार्ग को रूपांतरित किया जा सकता है। उस प्रवाह को एक तरफ जाने से रोका जा सकता है, दूसरी तरफ ले जाया जा सकता है।

आक्युपंक्चर की सारी कला यही है कि जब कोई आदमी बीमार होता है, तो किन्हीं शरीर के खास बिंदुओं पर वे गर्म सुई चुभोते हैं। और जरा सा सुई का चुभन, और भीतर की विद्युत धारा बदल जाती है। उस विद्युत धारा के बदलने से सैकड़ों बीमारियां तिरोहित हो जाती हैं। चीन में तो कोई पांच हजार सालों से वे इसका प्रयोग करते हैं। उन्होंने जो शरीर में माने हैं बिंदु, अब तो विज्ञान ने भी स्वीकृति दे दी है कि वे बिंदु हैं। और यह भी स्वीकार हो गया है–रूस में कम से कम! और रूस के तो अस्पतालों में भी आक्युपंक्चर का प्रयोग शुरू हो गया है। और अब तो उन्होंने यंत्र भी खोज लिए हैं कि मरीज को वे यंत्र में खड़ा कर देते हैं। तो जैसे एक्स-रे से पता चलता है कि भीतर कहां खराबी है, उस यंत्र से पता चलता है कि शरीर में घूमने वाली इलेक्ट्रिक करंट कहां बीमार पड़ गयी है। तो जहां बीमार पड़ गयी है वहां इलेक्ट्रिक का शाक उसे देते हैं। इलेक्ट्रिक का शाक देते ही विद्युतधारा प्रवाहित हो जाती है और बीमारी तिरोहित हो जाती है।

कान छेदना, नाथ-संप्रदाय के योगियों ने बड़े महत्वपूर्ण शाक की तरह खोजा था। वह शॉक था। इस तरह के शॉक बहुत तरह खोजे गए हैं। तुम्हें पता है कि यहूदी और मुसलमान खतना करते हैं। वह खतना भी इसी तरह का शॉक है और बड़ा महत्वपूर्ण है। यहूदी तो, बच्चा पैदा होता है, उसके चौदह दिन के भीतर उसका खतना करते हैं। और जननेंद्रिय के ऊपर की चमड़ी को काट कर अलग कर देते हैं।

इस संबंध में बहुत अध्ययन चलता आ रहा है कि इससे क्या लाभ होते होंगे? और लाभ प्रगाढ़ मालूम होते हैं। क्योंकि यहूदियों से ज्यादा प्रतिभाशाली कौम खोजना कठिन है। उनकी संख्या तो थोड़ी है, लेकिन जितनी नोबल-प्राइज यहूदी ले जाते हैं, उतनी कोई दूसरी जाति नहीं ले जाती। और यहूदी जिस दिशा में भी काम करेगा, हमेशा अग्रणी हो जाएगा। आगे पहुंच जाएगा। दूसरों को पीछे खदेड़ देगा। यहूदी के पास प्रतिभा तो ज्यादा मालूम पड़ती है।

इस सदी में जिन लोगों ने बड़े प्रभाव पैदा किए हैं वे सब यहूदी हैं। कार्ल माक्र्स, सिगमन फ्रायड और अलबर्ट आइंस्टीन, तीनों यहूदी हैं। और इन तीनों ने इस सदी को निर्मित किया है। और यहूदियों ने जितने प्रगाढ़ विचारक पैदा किए हैं, वैज्ञानिक पैदा किए हैं, किसी ने पैदा नहीं किए। उनका कोई मुकाबला नहीं है। और अभी इस संबंध में विचार शुरू हुआ है कि हो सकता है, चौदह दिन के भीतर जो खतना किया जाता है, उसका कुछ न कुछ गहरा संबंध प्रतिभा से है।

मुसलमान वह नहीं कर पाए, क्योंकि वे खतना बड़ी देर से करते हैं। यहूदियों का खयाल है कि चौदह दिन के भीतर बच्चे को जो पहला शॉक मिलता है–क्योंकि खतना जननेंद्रिय की चमड़ी का किया जाता है–तो पहला शॉक जननेंद्रिय के पास जो इकट्ठी ऊर्जा है, जो विद्युत-ऊर्जा है, उसको लगता है। और वह शॉक इतना गहरा है कि वह विद्युत-ऊर्जा उस जगह से हट कर सीधी मस्तिष्क पर चोट करती है। और छोटे बच्चे को वह जो चोट है, सदा के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है। उसकी जीवन-धारा बदल जाती है।

ओश
एक ओमकार सतनाम♣️♣️♣️♣️

Wednesday 24 May 2017

सब बीमारी का एक इलाज

सब बीमारी का एक इलाज                      250 ग्राम मैथीदाना
100 ग्राम अजवाईन
50 ग्राम काली जीरी
   ....     ....     ...  ..... .....                                       उपरोक्त तीनो चीजों को साफ-सुथरा करके हल्का-हल्का सेंकना(ज्यादा सेंकना नहीं) तीनों को अच्छी तरह मिक्स करके मिक्सर में पावडर बनाकर डिब्बा-शीशी या बरनी में भर लेवें ।
रात्रि को सोते समय चम्मच पावडर एक गिलास पूरा कुन-कुना पानी के साथ लेना है।
गरम पानी के साथ ही लेना अत्यंत आवश्यक है लेने के बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है।
यह चूर्ण सभी उम्र के व्यक्ति ले सकतें है।
चूर्ण रोज-रोज लेने से शरीर के कोने-कोने में जमा पडी गंदगी(कचरा) मल और पेशाब द्वारा बाहर निकल जाएगी ।
पूरा फायदा तो 80-90 दिन में महसूस करेगें, जब फालतू चरबी गल जाएगी, नया शुद्ध खून का संचार होगा । चमड़ी की झुर्रियाॅ अपने आप दूर हो जाएगी। शरीर तेजस्वी, स्फूर्तिवाला व सुंदर बन जायेगा ।
‘‘फायदे’’
1. गठिया दूर होगा और गठिया जैसा जिद्दी रोग दूर हो जायेगा ।
2. हड्डियाँ मजबूत होगी ।
3. आॅख का तेज बढ़ेगा ।
4. बालों का विकास होगा।
5. पुरानी कब्जियत से हमेशा के लिए मुक्ति।
6. शरीर में खुन दौड़ने लगेगा ।
7. कफ से मुक्ति ।
8. हृदय की कार्य क्षमता बढ़ेगी ।
9. थकान नहीं रहेगी, घोड़े की तहर दौड़ते जाएगें।
10. स्मरण शक्ति बढ़ेगी ।
11. स्त्री का शारीर शादी के बाद बेडोल की जगह सुंदर बनेगा ।
12. कान का बहरापन दूर होगा ।
13. भूतकाल में जो एलाॅपेथी दवा का साईड इफेक्ट से मुक्त होगें।
14. खून में सफाई और शुद्धता बढ़ेगी ।
15. शरीर की सभी खून की नलिकाएॅ शुद्ध हो जाएगी ।
16. दांत मजबूत बनेगा, इनेमल जींवत रहेगा ।
17. नपुसंकता दूर होगी।
18. डायबिटिज काबू में रहेगी, डायबिटीज की जो दवा लेते है वह चालू रखना है। इस चूर्ण का असर दो माह लेने के बाद से दिखने लगेगा ।
जीवन निरोग,आनंददायक, चिंता रहित स्फूर्ति दायक और आयुष्ययवर्धक बनेगा ।
जीवन जीने योग्य बनेगा ।

आप सभी से हाथ जोड़ कर विनती है कि इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करें !
आपके एक share से बहुत से लोगो का भला हो सकता है !
भगवान आपकी सहायता करे ….
धन्यवाद...

Tuesday 23 May 2017

श्री अरविंद घोष  जीवन परिचय

⚜⚜⚜⚜⚜⚜

*एक भारतीय राष्ट्रवादी सेनानी, दर्शनशास्त्री, गुरु और एक महान कवि वे ब्रिटिश राज को खत्म करने के लिए भारतीय राष्ट्रिय आन्दोलन में शामिल हुए और अन्तंत कम उम्र में ही एक ज्वलनशील और उर्जावान समाज सुधारक श्री अरबिंदो की  प्रेरणात्मक जीवनी*

*श्री अरविंद घोष  जीवन परिचय*

*पूरा नाम  ~अरविंद कृष्णघन घोष*

*जन्म       – 15 अगस्त 1872*

*जन्मस्थान – कोलकता (पं. बंगाल)*

*पिता =   डॉ. के.डी. घोष*

*माता =  स्वर्णलतादेवी*

*विवाह =   मृणालिनी के साथ (1901 में)।*

_*शिक्षा ~ प्राथमिक शिक्षा लॉरेंट कान्वेंट स्कूल में हुई तथा 7 वर्ष की अवस्था में इंग्लैंड भेजा गया उच्च शिक्षा के लिए जहा उन्हें एक पादरी के निर्देशन में शिक्षा दी गयी।उन्होंने अरविंद को लैटिन ओर ग्रीक भाषा का ज्ञान करवाया फिर उन्हें वहां सेंट पाल स्कूल में प्रवेश मिल गया। वहां उन्हें वटरवर्त प्राइज इतिहास का बेडफोर्ड प्राइज मिला अध्ययन के बाद श्री अरविंद 1893 में भारत वापस लौट आये।*

*श्री अरविंद की शिक्षा*

_*श्री अरविंद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, श्री अरविंद 14 बर्ष इंग्लैंड में रहकर 21 वर्ष की अवस्था मे वापस भारत आये और यहां आकर I.C.S की परीक्षा पास की फिर उन्होंने बरोदा राज्य की सेवा में प्रवेश किया और वे बड़ोदा महाविद्यालय के उपप्राचार्य बने लेकिन 1906 में कलकत्ता बंगाल नेशनल महाविद्यालय के प्राचार्य बनकर बने इसी समय इन्होंने एक अंग्रेजी दैनिक बंदे मातरम का संपादन किया । इन्होंने अंग्रेजी साप्ताहिक  कर्म- योगी तथा बंगला साप्ताहिक धर्म का संपादन किया।*_

*राजनीतिक गतिविधिया*

_*अरबिंदो के लिए 1902 से 1910 के वर्ष हलचल भरे थे, क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराने का बीड़ा उठाया था। सन् 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ने पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल के रूप में बंगाल के दो टुकड़े कर दिए ताकि हिन्दू और मुसलमानों में फूट पड़ सके। इस बंग-भंग के कारण बंगाल में जन जन में असंतोष फैल गया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर और अरबिंदो घोष ने इस जन आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन के विषय में लोकमान्य तिलक ने कहा -बंगाल पर किया गया अंग्रेज़ों का प्रहार सम्पूर्ण राष्ट्र पर प्रहार है।अरबिंदो घोष ने राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत करने तथा अंग्रेज़ों का विरोध प्रदर्शित करने के लिए पत्र - पत्रिकाओं में विचारोत्तेजक और प्रभावशाली लेख लिखे। उनके लेखों से जन जन में जागृति आ गयी।ब्रिटिश सरकार उनके इस क्रिया कलापों से चिंतित हो गई। सरकार ने"अलीपुर बम कांड" के अंतर्गत उन्हें जेल भेज दिया। जेल में उन्हें योग पर चिंतन करने का समय मिला। उन्होंने सन् 1907 में राष्ट्रीयता के साथ भारत को "भारत माता" के रूप में वर्णित और प्रतिष्ठित किया। उन्होंने बंगाल में "क्रांतिकारी दल" का संगठन किया और उसका प्रचार और प्रसार करने को अनेक शाखाएं खोली और वे स्वयं उसके प्रधान संचालक बने रहे। खुदीराम बोस और कनाईलाल दत्त, यह क्रांतिकारी उनके संगठन के ही क्रांतिकारी थे। इन गतिविधियों के कारण अरबिंदो घोष अधिक दिनों तक सरकार की नज़रों से छिपे नहीं रह पाये और उन्हें फिर से जेल जाना पड़ा। वह अपनी राजनीतिक गतिविधियों और क्रान्तिकारी साहित्यिक प्रयासों के लिए 1908 में बन्दी बना लिए गए।1906 से 1909 तक सिर्फ़ तीन वर्ष प्रत्यक्ष राजनीति में रहे। इसी में देश भर के लोगों के प्रिय बन गए।*_

*आध्यात्मिक*

_*सन 1910 में राजनीति से अलग होने पर श्री अरविंद ने अपना जीवन योग और आध्यात्मिक जीवन के प्रति समर्पित कर दिया उसी समय वे पांडिचेरी चले गए  वहां एक फ्रांसीसी महिला मादाम मीरा आफसा रिचर्ड भी उनके साथ काम करने लगी  जिसको श्री अरविंदो ने "माँ" का नाम दिया इन दोनों ने मिलकर श्री अरविंदो आश्रम की नींव डाली और अंत तक इसी आश्रम में रहे। श्री अरविंद ने कहा कि उन्हें उनकी योग साधना में श्री विवेकानंद ने दर्शन दिए।*_

*लेखन गतिविधियां*

_*श्री अरविंदो को अंग्रेजी ,हिंदी और बंगला भाषा पूर्ण अधिकार था उन्होंने कही रचनाये लिखी तीनो भाषाओं में।इन्होंने अपनी मूल रचनाये बंगला और अंग्रेजी भाषा मे लिखी इस प्रकार श्री अरविंदो indo-Anglian लेखकों में अग्रणी है। कवि के रूप में उनकी रचनाये छंदात्मक है ये अतुकांत कविता लिखने में सिद्धहस्त थे। ये आधुनिक अंग्रेजी गद्य साहित्य के मूर्धन्य लेखकों में से एक थे।*_

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*रचनाये*

_*"दी लाइफ डिवाइन" एक गद्य में रचित रागिनी है।*_
_*ऐसेंज ऑन दी गीता*_
_*ए डिफेंस ऑफ इंडियन कल्चर,*_
_*दी सीक्रेट ऑफ दी वेदाज*_
_*दी आइडील ऑफ ह्यूमन यूनिटी*_
_*दी साइकोलॉजी ऑफ सोशल डेवलपमेंट*_
_*दी सिंथेसिस ऑफ योग*_
_*दी फ्यूचर पोएट्री*_
_*दी ह्यूमन सायकिल*_
_*प्लेज एंड शार्ट स्टोरीज*_
_*कलेक्टेड पोयम्स*_
_*सावित्री नामक महाकाव्य*_
_*पिलग्रिम ऑफ द नाईट नामक एक सोंनेट*_

_*उपयुक्त रचनाये श्री अरविंदो के द्वारा लिखी गयी जो उनकी प्रतिभा को दर्शाती है।*_

_*श्री अरविंदो की मृत्यु पांडिचेरी आने के बाद वे सांसारिक कार्यों से अलग होकरआत्मा की खोज में लग गए। पांडिचेरी आने के बाद अरबिंदो घोष अंत तक योगाभ्यास करते रहे और उन्हें परमात्मा से साक्षात्कार की अनुभूति हुई। उनके आध्यात्मिक अनुभवों से असंख्य लोग प्रभावित हुए। उनका दृढ़ विश्वास था कि संसार के दु:ख का निवारण केवल आत्मा के विकास से ही हो सकता है जिसकी प्राप्ति केवल योग द्वारा ही संभव है। वे मानते थे कि योग से ही नई चेतना आ सकती है। अरबिंदो घोष की मृत्यु 5 दिसम्बर,1950 में पाण्डिचेरी में हुई थी।*_

*सिद्धान्त*

_*अरबिंदो घोष के सार्वभौमिक मोक्ष के सिद्धान्त के अनुसार, ब्रह्म के साथ एकाकार होने के दो मुखी रास्ते हैं- बोधत्व ऊपर से आता है (प्रमेय), जबकि आध्यात्मिक मस्तिष्क यौगिक प्रकाश के माध्यम से नीचे से ऊपर पहुँचने की कोशिश करता है (अप्रमेय)। जब ये दोनों शक्तियाँ एक–दूसरे में मिलती हैं, तबसंशय से भरे व्यक्ति का सृजन होता है (संश्लेषण)। यह यौगिक प्रकाश, तर्क व अंतर्बोध से परे अंततः व्यक्ति को वैयक्तिकता के बंधन से मुक्त करता है। इस प्रकार, अरबिंदो ने न केवल व्यक्ति के लिए, बल्कि समूची मानवता के लिए मुक्ति की तार्किक पद्धति का सृजन किया।*_

_*श्री अरविंदो एक महान भारतीय व्यक्तित्व थे जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे औऱ आज के प्रेरणास्रोत है श्री अरविंदो ने भारतीय शिक्षा पद्धति पर विशेष ध्यान दिया नैतिक आध्यात्मिक शिक्षा पर जोर दिया।*_