क्यों मनाई जाती है *नवरात्रि?*
क्यों की जाती है *आराधना माँ दुर्गा की?*
दो कथाएँ........
पहली कथा.....
ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण-वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा था।
विधि के अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ 108 नीलकमल की व्यवस्था भी ब्रह्मा जी ने करवा दी।
दूसरी ओर रावण ने भी अमरत्व प्राप्त करने के लिए चंडी पाठ प्रारंभ कर दिया।
यही नहीं रावण ने अपनी मायावी शक्तियों से श्रीराम के पूजास्थल से एक नीलकमल ग़ायब कर दिया, जिससे भगवान् श्रीराम की पूजा बाधित हो जाए।
इससे श्रीराम का संकल्प टूटता नज़र आया। इस बात से सभी भयभीत हो गए कि कहीं माँ दुर्गा कुपित न हो जाएँ।
अचानक श्रीराम को याद आया कि उन्हें *कमल-नयन नवकंज लोचन*.. भी कहा जाता है, तो क्यों न एक नेत्र को वह माँ की पूजा में समर्पित कर दें।
श्रीराम ने जैसे ही तूणीर से अपने नेत्र को निकालना चाहा तभी माँ दुर्गा प्रकट हुईं और उन्होंने श्री राम को विजयश्री का आशीर्वाद दे दिया।
इधर हनुमान जी ने भी चाल चली।
रावण की पूजा के समय हनुमान जी ब्राह्मण बालक का रूप धरकर वहाँ पहुँच गए और पूजा कर रहे ब्राह्मणों से एक श्लोक ..
*जयादेवी भूर्तिहरिणी*.. में *हरिणी के स्थान पर करिणी* उच्चारित करा दिया।
इससे *माँ दुर्गा* रावण से नाराज़ हो गईं और रावण को *श्राप* दे दिया जिससे *रावण का सर्वनाश* हो गया।
दूसरी कथा......
*महिषासुर* को उसकी उपासना से ख़ुश होकर देवताओं ने उसे *अजेय* होने का वर प्रदान कर दिया था।
उस वरदान को पाकर महिषासुर ने उसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और नरक को स्वर्ग के द्वार तक विस्तारित कर दिया।
महिषासुर ने सूर्य,चन्द्र, इन्द्र,अग्नि,वायु,यम,वरुण और अन्य देवतओं के भी अधिकार छीन लिए और स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा।
देवताओं को महिषासुर के भय से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा था।
महिषासुर के दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने माँ दुर्गा की रचना की।
महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र माँ दुर्गा को समर्पित कर दिए थे।
नौ दिनों तक उनका महिषासुर से संग्राम चला था और अन्त में महिषासुर का वध करके माँ दुर्गा *महिषासुरमर्दिनी* कहलाईं।
शारदीय नवरात्रि के रूप में मनाया जाने वाला पर्व दुर्गा-पूजा और दशहरे के रूप में मशहूर है,
जबकि चैत्र में मनाया जाने वाला पर्व रामनवमी और बसंत नवमी के रूप में प्रसिद्ध है।
ऐसा माना जाता है कि चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था।
नवमी के दिन लोग श्रीराम की झाँकियाँ भी निकालते हैं।
दक्षिण भारत में पहले दिन विशेष पूजा होती है। आम पल्लव और नारियल से सजा हुआ कलश मुख्यद्वार पर रखा जाता है।
नवरात्रि में हम शक्ति की देवी माँ दुर्गा की उपासना करते हैं।
इस दौरान कुछ भक्त नौ दिन का उपवास रखते हैं तो कुछ सिर्फ़ प्रथम और अन्तिम दिन फलाहार का सेवन करते हैं। शेष दिन सामान्य भोजन करते हैं। लेकिन लोग मांसाहार कभी नहीं करते।
अधिकतर श्रद्धालु दुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं।
दरअस्ल नवरात्रि में *उपासना और उपवास* का विशेष महत्व है।
*उप* का अर्थ है.....
*निकट*
*वास* का अर्थ है......
*निवास*
अर्थात् *ईश्वर से निकटता* बढ़ाना।
कुल मिलाकर यह माना जाता है कि उपवास के माध्यम से हम ईश्वर(माँ ) को अपने मन में ग्रहण करते हैं,मन में ईश्वर का वास हो जाता है।
यह भी मानते हैं कि आज की परिस्थितियों में उपवास के बहाने हम अपनी *आत्मिक शुद्धि* भी कर सकते हैं,अपनी जीवनशैली में सुधार ला सकते हैं।
हिन्दू धर्म में या(शास्त्र के अनुसार) उपवास का सीधा-सा अर्थ है......
*आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति* के लिए अपनी भौतिक आवश्यकताओं का परित्याग करना।
सामान्य भाषा में बात करें तो.......
भोजन (खाना ) लेने से हमारी इंन्द्रियाँ तृप्त हो जाती हैं और मन पर तन्द्रा हावी होती है।
कम मात्रा में भोजन कर या फलाहार कर हम इन्द्रियों को नियंत्रित करना सीखते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार भी जब आपका पेट भरा होता है तो आपकी बुद्धि सो जाती है, विवेक मौन हो जाता है।
उपवास रखने से हमारे तन और मन दोनों का शुद्धिकरण होता है, हमारा दिमाग़ पाचक अग्नि की तरफ़ नहीं जाता। ऊर्जा-संग्रहण से मन चैतन्य रहता है।
उपवास से हम दूसरों के कष्ट का भी अहसास कर सकते हैं।
यह शरीर और आत्मा को एकाकार करने का माध्यम तो है ही, इससे भागम-भाग वाली जीवनशैली से भी कुछ समय के लिए निजात पाया जा सकता है।
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