Wednesday, 28 December 2016

ॐ (OM)  उच्चारण के 11 शारीरिक लाभ

ॐ (OM)  उच्चारण के 11 शारीरिक लाभ :

ॐ : ओउम् तीन अक्षरों से बना है।
अ उ म् ।
"अ" का अर्थ है उत्पन्न होना,
"उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास,
"म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना।
ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है।
ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है।
जानीए
ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग...

● *उच्चारण की विधि*

प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं।

01)  *ॐ और थायराॅयडः*

ॐ का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

*02)  *ॐ और घबराहटः-*
अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।

*03) *..ॐ और तनावः-*
यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।

*04)  *ॐ और खून का प्रवाहः-*
यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।

*5)  ॐ और पाचनः-*

ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।

*06)  ॐ लाए स्फूर्तिः-*
इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।

*07)  ॐ और थकान:-*
थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।

*08) .ॐ और नींदः-*
नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी।

*09) .ॐ और फेफड़े:-*
कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।

*10)  ॐ और रीढ़ की हड्डी:-*
ॐ के पहले शब्द का उच्चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।

*11)  ॐ दूर करे तनावः-*
ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।

आशा है आप अब कुछ समय जरुर ॐ का उच्चारण करेंगे । साथ ही साथ इसे उन लोगों तक भी जरूर पहुंचायेगे जिनकी आपको फिक्र है ।
अपना ख्याल रखिये, खुश रहें ।

Tuesday, 27 December 2016

चीनी एक जहर है जो अनेक रोगों का कारण है,

चीनी एक जहर है जो अनेक रोगों का कारण है, जानिये कैसे...
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(1)-- चीनी बनाने की प्रक्रिया में गंधक का सबसे अधिक प्रयोग होता है । गंधक माने पटाखों का मसाला
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(2)-- गंधक अत्यंत कठोर धातु है जो शरीर मेँ चला तो जाता है परंतु बाहर नहीँ निकलता ।
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(3)-- चीनी कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाती है जिसके कारण हृदयघात या हार्ट अटैक आता है ।
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(4)-- चीनी शरीर के वजन को अनियन्त्रित कर देती है जिसके कारण मोटापा होता है ।
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(5)-- चीनी रक्तचाप या ब्लड प्रैशर को बढ़ाती है ।
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(6)-- चीनी ब्रेन अटैक का एक प्रमुख कारण है ।
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(7)-- चीनी की मिठास को आधुनिक चिकित्सा मेँ सूक्रोज़ कहते हैँ जो इंसान और जानवर दोनो पचा नहीँ पाते ।
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(8)-- चीनी बनाने की प्रक्रिया मेँ तेइस हानिकारक रसायनोँ का प्रयोग किया जाता है ।
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(9)-- चीनी डाइबिटीज़ का एक प्रमुख कारण है ।
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(10)-- चीनी पेट की जलन का एक प्रमुख कारण है ।
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(11)-- चीनी शरीर मे ट्राइ ग्लिसराइड को बढ़ाती है ।
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(12)-- चीनी पेरेलिसिस अटैक या लकवा होने का एक प्रमुख कारण है।
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(13) चीनी बनाने की सबसे पहली मिल अंग्रेजो ने 1868 मेँ लगाई थी ।उसके पहले भारतवासी शुद्ध देशी गुड़ खाते थे और कभी बीमार नहीँ पड़ते थे ।
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(14) कृपया जितना हो सके, चीनी से गुड़ पे आएँ ।

श्री  रूद्राष्ट्कम 

*!!!!!  श्री  रूद्राष्ट्कम  !!!!!*

*नमामी शमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं, ब्रह्म वेदस्वरूपम् ।*
*निजं, निर्गुणं, निर्विकल्पं, निरीहं, चिदाकाशं आकाशवासं भजेहं ।।*

हे मोक्ष रूप (आप जो) सर्व व्यापक हैं, ब्रह्म और वेद् स्वरूप हैं, माया, गुण, भेद, इक्षा से रहित हैं, चेतन, आकाश रूप एवं आकाश को ही वस्त्ररूप को धारण करने वाले हैं, आपको प्रणाम करता हूँ।

*निराकारं ॐकार मुलं तुरीयं, गिरा ज्ञान गोती-तमीशं गिरीशम् ।*
*करालं महाकाल कालं कृपालं, गुणागार संसार-पारं नतो अहम ।।*

हे निराकार आप जो कि ॐ कार के भी मूल हैं, तथा तीनों गुणों (सद-रज-तमस) से पृथक हैं, वाणी-ज्ञान-इंद्रियों से परे हैं, महाकाल के भी काल हैं, मैं ऐसे कृपालु, गुणों के भंडार, एवं सृष्टि से परे आप परम देव को नमस्कार करता हूँ।

*तुषाराद्रि-संकाश-गौरं गंभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।*
*स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद भाल बालेन्दू कण्ठे-भुजंगा॥*

हे शिव, आप हिमालय पर्वत के समक्ष गौर वर्ण वाले तथा गंभीर चित वाले हैं तथा
आपके शरीर की कांति करोडों कामदेवों की ज्योति के सामान है। आपके शिश पर गंगाजी, ललाट पर दूज का चन्द्रमा तथा गले में सर्प माल शोभायमान है।

*चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।*
*मृगाधीश-चर्माबरं मुण्डमालं, प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥*

कानों में झिलमिलाते कुण्ड्ल से सोभायमान तथा विशाल नेत्रों एवं सुन्दर भौंहें वाले, हे नीलकंठ, हे सदा प्रसन्नचित रहने वाले परम दयालु, मृगचर्म एवं मुण्डमाल धारण करने वाले, सबके प्रिय और स्वामी, हे शंकर! मैं आपको भजता हूँ।

*प्रचण्डं, प्रकृष्टं, प्रगल्भं, परेशं, अखंडं अजं भानुकोटि-प्रकाशम्।*
*त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥*

आप प्रचण्ड रूद्रस्वरूप, उत्तम, तेजवान, परमेश्वर, अखंड, जन्मरहित, करोडों सूर्यों के सामान प्रकाशमान, तीनों प्रकार के दुःखो को हरने वाले, हाथों मे शूल धारण करने वाले, एवं भक्ति द्वारा प्राप्त होने वाले हैं। हे माँ भवानी के स्वामि, मैं आपको भजता हूँ।

*कलातीत-कल्याण-कल्पांतकारी, सदा सज्जनानन्द दातापुरारी।*
*चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्माथारी॥*

आप (सोलह) कलाओं से पृथक, कल्यानकारी, कल्पचक्र के नियन्ता, सज्जनों को आनन्द प्रदान करने वाले, सत, चित, आनन्द स्वरूप त्रिपुरारी हैं। हे प्रभु! आप मुझ पर प्रसन्न होएं। प्रसन्न होएं।

*न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नाराणम्।*
*न तावत्सुखं शांति संताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम् ॥*

जबतक उमापति के चरणरूप कमलों को प्राणी नहीं भजते, या उनका ध्यान नहीं करते तबतक उन्हे इस लोक या परमलोक में सुख-शांति नहीं मिलती। हे सभी प्राणियों में वास करने वाले, प्रभु, आप प्रसन्न हों।

*न जानामि योगं जपं नैव पूजाम्, नतोहं सदा सर्वदा शम्भु ! तुभ्यम।*
*जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं, प्रभो ! पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥*

हे शम्भुं! मैं पुजा-जप-तप-योग आदि कुछ भी नहीं जानता; मैं सदैव आपको प्रणाम करता हूँ। जन्म,अवस्था रोग आदि दुःखों से पीडित मुझ दीन की आप रक्षा करें! हे प्रभु मैं आपको प्रणाम करता हूँ।

*रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,*
*ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ॥*

     ।।।जय विश्वनाथ जय महाकाल।।।

चुटकियो में भगाये दांतो का दर्द

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*चुटकियो में भगाये दांतो का दर्द*
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जब भी दाँतों में दर्द उठता है तो इंसान तिलमिला उठता है. खास तौर पर तब जब वह कुछ ठंडा या गरम खाने की कोशिश करता है. कभी कब ही तो यह दर्द बैठे बैठे ही सता जाता है. तो आइए जाने इस से छुटकारा पाने के लिए आप क्या क्या कर सकते है.

1. दांत का दर्द अगर परेशान कर रहा हो तो पांच लौंग पीस कर उसमे निम्बू का रस निचोड़कर दांतो पर मलने से दर्द दूर होता है.

2. दांत में कीड़ा लगने पर दांतो के नीचे लौंग को रखना या लौंग का तेल लगाना चाहिए.

3. पांच लौंग एक ग्लास पानी में उबालकर इसमें कुल्ले करने से दर्द ठीक हो जाता है.

4. नीम की कोंपलों को उबाल कर कुल्ले करने से दांतो का दर्द जाता रहता है.

5. दर्द वाले दांत पर कपूर लगाएं. दांत में छेद हो तो उसमे कपूर भर दें. दर्द दूर होगा, कीड़े भी मर जाएंगे.

6. गर्म पानी में मिलकर कुल्ले करने से दांत दर्द में लाभ होता है. नित्य रात को सोने से पहले गर्म पानी में नमक डाल कर गरारे करके सोने से दांतों में कोई रोग नहीं होता.

7. अदरक के टुकड़े पर नमक डालकर दर्द वाले दांतो में दबाएं, आराम मिले

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Sunday, 25 December 2016

आरती के बाद क्यों बोलते हैं कर्पूरगौरं मंत्र

*आरती के बाद क्यों बोलते हैं कर्पूरगौरं मंत्र :*

किसी भी मंदिर में या हमारे घर में जब भी पूजन कर्म होते हैं तो वहां कुछ मंत्रों का जप अनिवार्य रूप से किया जाता है, सभी देवी-देवताओं के मंत्र अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी आरती पूर्ण होती है तो यह मंत्र विशेष रूप से बोला जाता है l

*कर्पूरगौरं मंत्र :*

*कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।*

*ये है इस मंत्र का अर्थ :*

*इस मंत्र से शिवजी की स्तुति की जाती है। इसका अर्थ इस प्रकार है :*

*कर्पूरगौरं-* कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।

*करुणावतारं-* करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।

*संसारसारं-* समस्त सृष्टि के जो सार हैं।

*भुजगेंद्रहारम्-* इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।

*सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि-* इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।

*मंत्र का पूरा अर्थ :-*

जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।

*यही मंत्र क्यों….*

किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारं….मंत्र ही क्यों बोला जाता है, इसके पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गाई हुई मानी गई है। अमूमन ये माना जाता है कि शिव शमशान वासी हैं, उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी वाला है। लेकिन, ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य है। शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति। ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे। शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं। हमारे मन में शिव वास करें, मृत्यु का भय दूर हो।

भगवान् का स्मरण कैसे करें ?

भगवान् का स्मरण कैसे करें ?

१. ऐसे करो, जैसे अफीमची अफीम न मिलनेपर अफीम का स्मरण करता है ।

२. ऐसे करो, जैसे मुकद्दमेबाज मुकद्दमे का स्मरण करता है ।

३. ऐसे करो, जैसे जुआरी जुए का स्मरण करता है ।

४. ऐसे करो, जैसे लोभी धन का स्मरण करता है ।

५. ऐसे करो, जैसे कामी कामिनी का स्मरण करता है ।

६. ऐसे करो, जैसे शिकारी शिकार का स्मरण करता है ।

७. ऐसे करो, जैसे निशानेबाज निशाने का स्मरण करता है ।

८. ऐसे करो, जैसे किसान पके खेत का स्मरण करता है ।

९. ऐसे करो, जैसे प्यास से व्याकुल मनुष्य जल का स्मरण करता है ।

१०. ऐसे करो, जैसे भूख से सताया हुआ मनुष्य भोजन का स्मरण करता है ।

११. ऐसे करो, जैसे घर भूला हुआ मनुष्य घर का स्मरण करता है ।

१२. ऐसे करो, जैसे बहुत थका हुआ मनुष्य विश्राम का स्मरण करता है ।

१३. ऐसे करो, जैसे भय से कातर मनुष्य शरण देनेवाले का स्मरण करता है ।

१४. ऐसे करो, जैसे डूबता हुआ मनुष्य जीवन रक्षा का स्मरण करता है ।

१५. ऐसे करो, जैसे दम घुटनेपर मनुष्य वायु का स्मरण करता है ।

१६. ऐसे करो, जैसे परीक्षार्थी परीक्षा के विषय का स्मरण करता है ।

१७. ऐसे करो, जैसे ताजे पुत्रवियोग से पीड़ित माता पुत्र का स्मरण करती है ।

१८. ऐसे करो, जैसे नवीन विधवा अबला अपने मृत पति का स्मरण करती है ।

!!! जय श्री कृष्ण !!!

प्यार के नियम


न्यूटन की तरह मैने भी प्यार के नियम की खोज की है जो इस प्रकार है :-

सार्वत्रिक (यूनिवर्सल) नियम :-:

प्यार को न तो पैदा किया जा सकता है...
और न ही नष्ट किया जा सकता है,
इसे केवल कुछ धन की क्षति के साथ
एक गर्ल फ्रेंड से दूसरी गर्लफ्रेंड में स्थानांतरित किया जा सकता है….!!

पहला नियम :-: लड़का , लड़की को हमेशा प्यार करता रहेगा
और लड़की भी लडके को प्यार करना जारी रखेगी....
तब तक जब तक कि कोई बाह्य बल (लड़की के बाप एवं भाई द्वारा लडके की टाँगे तोड़कर ) न लगाया जाये…!

दूसरा नियम :-: एक दुसरे के प्रेम में डूबे युगल में...
लड़की द्वारा लड़के से किये जाने वाले प्रेम की मात्रा में परिवर्तन,
लडके के बेंक बेलेंस की मात्रा के अनुक्रमानुपाती होता है…!

तीसरा नियम :-: लड़की द्वारा प्रेम निवेदन अस्वीकार किये जाने में प्रयुक्त आरोपित बल,
उसके सेंडल द्वारा प्रयोग किये जाने वाले बल के
समान एवं विपरीत दिशा में होता है…!!

Thursday, 22 December 2016

कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है....

*कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है.......*

                         *सोना*

सोना एक गर्म धातु है। सोने से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है।

                        *चाँदी*

चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है। शरीर को शांत रखती है  इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है।

                           *कांसा*

काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में  शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल ३ प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

                         *तांबा*

तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है।

                        *पीतल*

पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती। पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल ७ प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

                         *लोहा*

लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से  शरीर  की  शक्ति बढती है, लोह्तत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है। लोहा कई रोग को खत्म करता है, पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और  पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को दूर रखता है. लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है। लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है।

                         *स्टील*

स्टील के बर्तन नुक्सान दायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से. इसलिए नुक्सान नहीं होता है. इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी  नहीं पहुँचता।

                      *एलुमिनियम*

एल्युमिनिय बोक्साईट का बना होता है। इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुक्सान होता है। यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे हड्डियां कमजोर होती है. मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है। उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है। एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं।

                           *मिट्टी*

मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते थे। इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए। भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है। दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त हैमिट्टी के बर्तन। मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे १०० प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं। और यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है।

पानी पीने के पात्र के विषय में 'भावप्रकाश ग्रंथ' में लिखा है....

*जलपात्रं तु ताम्रस्य तदभावे मृदो हितम्।*
*पवित्रं शीतलं पात्रं रचितं स्फटिकेन यत्।*
*काचेन रचितं तद्वत् वैङूर्यसम्भवम्।*
(भावप्रकाश, पूर्वखंडः4)

अर्थात् पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक अथवा काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। सम्भव हो तो वैङूर्यरत्नजड़ित पात्र का उपयोग करें। इनके अभाव में मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए।

*जय श्री राधे....*
*जय श्री कृष्ण....*

Wednesday, 21 December 2016

10 PRINCIPLES OF LIFE


10 Principles Of Life:

Stop and ask yourself today, "How do I really feel about myself? " Before you answer read these ten principles.

(1) Never think or speak negatively about yourself; that puts you in disagreement with God.

(2) Meditate on your God-given strengths and learn to encourage yourself, for much of the time nobody else will.

(3) Don't compare yourself to anybody else. You're unique, one of a kind, an original. So don't settle for being a copy.

(4) Focus on your potential, not your limitations. Remember, God lives in you!

(5) Find what you like to do, do well, and strive to do it with excellence.

(6) Have the courage to be different. Be a God pleasure, not a people pleasure .

(7) Learn to handle criticism. Let it develop you instead of discourage you.

(8) Determine your own worth instead of letting others do it for you. They'll short-change you!

(9) Keep your shortcomings in perspective - you're still a work in progress.

(10) Focus daily on your greatest source of confidence - the God Who lives in you

Completely Finished

_Especially for English Language Lovers..  Can any one tell the difference between 'Completed' and 'Finished'?  No dictionary has ever been able to define the difference between 'Complete' and 'Finished.'  However, in a linguistic conference, held in London England, Sun Sherman an Indian American, was the clever winner.   His final challenge was this. His response was: When you marry the right woman, you are 'Complete.' If you marry the wrong woman, you are 'Finished.' And , when the right woman catches you with the wrong woman, you are 'Completely Finished.'  His answer  received a five minute standing ovation._