Tuesday, 18 April 2017

शिक्षक की गोद में उत्थान पलता है

शिक्षक की गोद में उत्थान पलता है।
सारा जहां शिक्षक के पीछे ही चलता है।

शिक्षक का बोया हुआ पेड़ बनता है।
वही पेड़ हजारों बीज जनता है।

शिक्षक काल की गति को मोड़ सकता है।
शिक्षक धरा से अम्बर को जोड़ सकता है।

शिक्षक की महिमा महान होती है।
शिक्षक बिन अधूरी हूँ वसुन्धरा कहती है।

याद रखो चाणक्य ने इतिहास बना डाला था।
क्रूर मगध राजा को मिट्टी में मिला डाला था।

बालक चन्द्रगुप्त को चक्रवर्ती सम्राट बनाया था।
एक शिक्षक ने अपना लोहा मनवाया था।

संदीपनी से गुरु सदियों से होते आये है।
कृष्ण जैसे नन्हे नन्हे बीज बोते आये है।

शिक्षक से ही अर्जुन और युधिष्ठिर जैसे नाम है।
शिक्षक की निंदा करने से दुर्योधन बदनाम है।

शिक्षक की ही दया दृष्टि से बालक राम बन जाते है।
शिक्षक की अनदेखी से वो रावण भी कहलाते है।

हम सब ने भी शिक्षक बनने का सुअवसर पाया है।
बहुत बड़ी जिम्मेदारी को हमने गले लगाया है।

आओ हम संकल्प करे की अपना फ़र्ज निभायेगे।
अपने प्यारे भारत को हम जगतगुरु बनायेंगे।

अपने शिक्षक होने का हरपल अभिमान करेगे।
इस समाज में हम भी अपना शिक्षा दान करेगे।

शिक्षको को समर्पित कविता।

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