Friday 14 July 2017

नागपंचमी पौराणिक महत्त्व एवं पूजा विधि

नागपंचमी पौराणिक महत्त्व एवं पूजा विधि
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हिंदू धर्मग्रन्थों के अनुसार, श्रावण मास की शुक्ल पंचमी को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह नागों और सर्पों की पूजा का पर्व है। मनुष्य और नागों का संबंध पौराणिक कथाओं से झलकता रहा है। हिंदू धर्मग्रन्थों में नाग को देवता माना गया है और इनका विभिन्न जगहों पर उल्लेख भी किया गया है। हिन्दू धर्म में कालिया, शेषनाग, कद्रू (साँपों की माता) पिलीवा आदि बहुत प्रसिद्ध हैं। कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री तथा कश्यप ऋषि (जिनके नाम से कश्यप गोत्र चला) की पत्नी ‘कद्रू’ नाग माता के रूप में आदरणीय रही हैं। कद्रू को सुरसा के नाम से भी जाना जाता है।

पौराणिक महत्ता शेषनाग के फन पर पृथ्वी टिकी है। भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर सोते हैं। शिवजी के गले में सर्पों का हार है। कृष्ण जन्म पर नाग की सहायता से ही वासुदेवजी ने यमुना पार की थी। यहां तक कि समुद्र-मंथन के समय देवताओं की मदद भी वासुकी नाग ने ही की थी। लिहाजा नाग देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है- नागपंचमी।

वर्षा ऋतु में वर्षा का जल धीरे-धीरे धरती में समाकर सांपों के बिलों में भर जाता है। इसलिए श्रावण मास में सांप सुरक्षित स्थान की खोज में अपने बिल से बाहर निकलते हैं। संभवतः उस समय उनकी रक्षा करने और सर्पभय व सर्पविष से मुक्ति पाने के लिए भारतीय संस्कृति में इस दिन नाग के पूजन की परंपरा शुरू हुई।

इस दिन कुछ लोग उपवास करते हैं। नागपूजन के लिए दरवाजे के दोनों ओर गोबर या गेरुआ या ऐपन (पिसे हुए चावल व हल्दी का गीला लेप) या कोयले से नाग बनाया जाता है। पटरे या जमीन को गोबर से लीपकर, उस पर सांप का चित्र बना के पूजा की जाती है। गंध, पुष्प, कच्चा दूध, खीर, भीगे चने, लावा आदि से नागपूजा होती है। जहां सांप की बाबी दिखे, वहां कच्चा दूध और लावा चढ़ाया जाता है। इस दिन सर्पदर्शन बहुत शुभ माना जाता है।

नागपूजन करते समय इन 12 प्रसिद्ध नागों के नाम लिये जाते हैं- धृतराष्ट्र, कर्कोटक, अश्वतर, शंखपाल, पद्म, कम्बल, अनंत, शेष, वासुकी, पिंगल, तक्षक और कालिय। साथ ही इनसे अपने परिवार की रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है। इस दिन सूर्यास्त के बाद जमीन खोदने की मनाही होती है।

इस दिन नाग देवता पर या मंदिर में सर्प की मूर्तियों पर दूध चढ़ाने की परंपरा है। सुगंधित फूल और चंदन से पूजा करनी चाहिए। कई जगहों पर नागपंचमी से एक दिन पहले ही भोग और पकवान बना लिया जाता है और दूसरे दिन इसे बासी खाया जाता है।

11 माला ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा का जाप करने से सर्प दोष दूर होता है।

इस दिन नाग को मारना नहीं चाहिए। साथ ही नागों को दूध पिलाने का कार्य भी नहीं करना चाहिए। दरअसल, दूध पिलाना नागों की मृत्यु का कारण बनता है। ऐसे में नागपंचमी के दिन नागों को दूध पिलाना अपने हाथों से अपने देवता की जान लेने के समान है। इसलिए ऐसा करने से बचना चाहिए।

मनसा देवी की पूजा
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उत्तर भारत में नागपंचमी के दिन मनसा देवी की पूजा करने का विधान भी है। मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री और नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है। देवी मनसा को नागों की देवी माना गया है, इसलिए बंगाल, ओडिशा और अन्य क्षेत्रों में नागपंचमी के दिन मनसा देवी की पूजा-अर्चना की जाती है।
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