चिप नहीं फिर कैसे पकड़े जा रहे हैं इतनी बड़ी मात्रा में नोट के बंडल?
देश में जितने बड़े पैमाने पर नोटों के बंडल पकड़े जा रहे हैं वैसा अभी तक कभी नहीं हुआ होगा। हर किसी के मन में सवाल है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि नोट के बंडल बैंकों से निकलते ही 2 से 4 दिन के अंदर पकड़ लिए जा रहे हैं। इनकम टैक्स के अफसरों को आखिर बड़ी तादाद में ले जाए जा रहे कैश का पता कैसे चल जा रहा है?
यहां हम आपको बता दें कि नकदी की तलाश में मारे गए इनकम टैक्स के छापों में से एक भी अभी तक ऐसा नहीं है जिसमें उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा हो। ऐसे छोटे बड़े छापों में अब तक 300 करोड़ से ज्यादा कैश पकड़ा जा चुका है।
छापों में 100 फीसदी कामयाबी कैसे?
कई लोग इस बात पर हैरान हैं कि नकदी के लिए मारे गए छापे अब तक लगभग सौ फीसदी सफल रहे हैं। कर्नाटक के चित्रदुर्ग में इनकम टैक्स अफसरों ने सीधे घर के बाथरूम में ही छापा मारा था और ऐसा लग रहा था कि वहां पर नोट कहां है इसकी जानकारी पहले से थी।
यही हाल लगभग सभी जगह हुआ है। चाहे वो दिल्ली में चार्टर्ड अकाउंटेंट का दफ्तर हो या बेंगलुरु में कर्नाटक सरकार के इंजीनियरों का घर। सबसे ज्यादा बरामदगी नकदी को कार, ट्रेन या हवाई जहाज से ले जाने की कोशिश में हुई है। इसी वजह से कई लोग यह शक जताने लगे हैं कि नई नोट में चिप तो नहीं लेकिन कोई न कोई ऐसा सिक्योरिटी फीचर लगा है जिसकी वजह से इसका सुराग आसानी से मिल जा रहा है।
एक जानकारी के आधार पर अनुमान लगाया जा रहा है कि नोट में कोई चिप नही बल्कि एक प्रकार के रेडियो एक्टिव इंक का प्रयोग है। रेडियोएक्टिव स्याही का प्रयोग विकसित देशों में पहले से बतौर इंडिकेटर (सूचक/संकेतक) किया जाता रहा है।
दरअसल P32 फास्फोरस का रेडियोएक्टिव आइसोटोप है जिसके नाभिक मे 15 प्रोटोन और 17 न्यूट्रोन होते हैं और यह रेडियोएक्टिव स्याही में न्यून मात्रा में प्रयोग किया जाता है। यह रेडियोएक्टिव वार्निंग टेप की तरह प्रयोग होता है जिससे एक ही जगह पर मौजूद लिमिट से अधिक होने पर इंडिकेटर के तौर पर नोटों की मौजूदगी को यह सूचित करता है। जिससे भारी मात्रा में लोग इससे युक्त नगदी का संग्रह करते ही पकड़े जा रहे हैं।
नए नोट भी लोग छुपा कर वहीँ रख रहे हैं जहां सोना चांदी और अन्य अवैध कमाई के नोट है ऐसे में जांच के दौरान छिप कुछ नही रहा।
दो हजार के साथ पांच सौ की नोट में भी यही इंक का प्रयोग है और जल्द आने वाली हजार के नोट में भी यही प्रयोग हुआ है। हालाँकि क्षयांक यानि टी हाफ की वजह से एक तय समय बाद नोट की इंडिकेटर सक्रियता कम हो जायेगी इसलिए नये नोट भी भविष्य में बंद होंगे।
यह इंक का इंडिकेटर कहाँ लगा है इसकी जानकारी नहीं मिल पायी है।
इसे आप संकल्पना (हाइपोथिसिस) कहें या जो भी मगर सिर्फ आप लोगों के हित में है, क्योंकि आप ईमानदार नही बने तो यह नई नोट आपको ईमानदार बना देगी। जिसे शक दूर करना हो वह गूगल में रेडियोएक्टिव इंक खोज सकता है अन्यथा भ्रम पाले रहना भी बहुतों को जरुरी..
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