Sunday, 8 January 2017

मंदिर

हँसोगे तो फंसोगे

किसी मंदीर में एक पंडित रहते थे। पंडित के पास 1गधा भी था

सैकड़ों भक्त उस मंदीर पर आकर दान-दक्षिणा चढ़ाते थे❗

उन भक्तों में एक बंजारा भी था।
वह बहुत गरीब था ,
फिर भी, नियमानुसार आकर माथा टेकता,

पंडित की सेवा करता,
और
फिर अपने काम पर जाता,

उसका कपड़े का व्यवसाय था,
कपड़ों की भारी पोटली कंधों पर लिए सुबह से लेकर शाम तक गलियों में फेरी लगाता,
कपड़े बेचता❗

एक दिन उस पंडित को उस
पर दया आ गई,
उसने अपना गधा उसे भेंट कर दिया❗

अब तो बंजारे की आधी समस्याएं हल हो गईं।

वह सारे कपड़े गधे पर लादता और जब थक जाता
तो
खुद भी गधे पर बैठ जाता

इसी बीच गधा भी अपने नये मालीक से काफी घूलमील गया था

यूं ही कुछ महीने बीत गए,,
एक दिन गधे की मृत्यु हो गई❗

बंजारा बहुत दुखी हुआ,
उसने गधे को उचित स्थान पर दफनाया,
और उसकी समाधी बनाई
और
फूट-फूट कर रोने लगा❗

समीप से जा रहे किसी व्यक्ति ने
जब यह दृश्य देखा,
तो सोचा
जरूर किसी संत की समाधी होगी❗
तभी यह
बंजारा यहां बैठकर अपना दुख रो रहा है❗

यह सोचकर उस व्यक्ति ने समाधी पर
माथा टेका और अपनी मनोकामना हेतु वहां प्रार्थना की कुछ पैसे चढ़ाकर वहां से चला गया❗

कुछ दिनों के उपरांत ही उस
व्यक्ति की कामना पूर्ण हो गई❗

उसने
खुशी के मारे सारे गांव में
डंका बजाया कि अमुक स्थान पर एक पूर्ण संत की समाधी है❗

वहां जाकर जो मनोकामना मांगो वह पूर्ण होती है।
मनचाही मुरादे बख्शी जाती हैं

उस दिन से उस समाधी पर
भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया❗

दूर-दराज से भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु आने लगे।

बंजारे की तो चांदी हो गई,
बैठे-बैठे उसे कमाई
का साधन मिल गया था❗

और धीरे धीरे वह समाधी भी पूरी तरह से मंदीर का आकार ले चुकी थी❗

एक दिन वही पूराने पंडित
जिन्होंने बंजारे
को अपना गधा भेंट स्वरूप
दिया था वहां से गुजर रहे थे❗

उन्हें देखते ही बंजारे ने उनके चरण पकड़ लिए और बोला-
"आपके गधे ने
तो मेरी जिंदगी बना दी❗

जब तक जीवित था
तब तक मेरे रोजगार में मेरी मदद करता था
और
मरने के बाद
मेरी जीविका का साधन उसका मंदीर बन
गया है❗"

पंडित हंसते हुए बोले,
"बच्चा!
जिस मंदीर में
तू नित्य माथा टेकने आता था,
वह मंदीर इस गधे की मां का था❗"

यूही चल रहा है भारत ❗

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