बेल बजी तो द्वार खोला। द्वार पर शिवराम खड़ा था। शिवराम हमारी कॉलोनी के लोगों की गाड़ियाँ, बाइक्स वगैरह धोने का काम करता था।
" साहब, जरा काम था। "
" तुम्हारी पगार बाकी है क्या, मेरी तरफ ? "
" नहीं साहब, वो तो कब की मिल गई। पेड़े देने आया था, बेटा दसवीं पास हो गया। "
" अरे वाह ! आओ अंदर आओ। "
मैंने उसे बैठने को कहा। उसने मना किया लेकिन फिर, मेरे आग्रह पर बैठा। मैं भी उसके सामने बैठा तो उसने पेड़े का पैकेट मेरे हाँथ पर रखा।
" कितने मार्क्स मिले बेटे को ? "
" बासठ प्रतिशत। "
" अरे वाह ! " उसे खुश करने को मैं बोला।
आजकल तो ये हाल है कि, 90 प्रतिशत ना सुनो तो आदमी फेल हुआ जैसा मालूम होता है। लेकिन शिवराम बेहद खुश था।
" साहब, मैं बहुत खुश हूँ। मेरे खानदान में इतना पढ़ जाने वाला मेरा बेटा ही है। "
" अच्छा, इसीलिए पेड़े वगैरह ! "
शिवराम को शायद मेरा ये बोलना अच्छा नहीं लगा। वो हलके से हँसा और बोला, " साहब, अगर मेरी सामर्थ्य होती तो हर साल पेड़े बाँटता। मेरा बेटा बहुत होशियार नहीं है, ये मुझे मालूम है। लेकिन वो कभी फेल नहीं हुआ और हर बार वो 2-3 प्रतिशत नंबर बढ़ाकर पास हुआ, क्या ये ख़ुशी की बात नहीं ? "
" साहब, मेरा बेटा है, इसलिए नहीं बोल रहा, लेकिन बिना सुख सुविधाओं के वो पढ़ा, अगर वो सिर्फ पास भी हो जाता, तब भी मैं पेड़े बाँटता। "
मुझे खामोश देख शिवराम बोला, " माफ करना साहब, अगर कुछ गलत बोल दिया हो तो। मेरे बाबा कहा करते थे कि, आनंद अकेले ही मत हजम करो बल्कि, सब में बाँटो। ये सिर्फ पेड़े नहीं हैं साहब - ये मेरा आनंद है ! "
मेरा मन भर आया। मैं उठकर भीतरी कमरे में गया और एक सुन्दर पैकेट में कुछ रुपए रखे।
भीतर से ही मैंने आवाज लगाई, " शिवराम, बेटे का नाम क्या है ? "
" विशाल। " बाहर से आवाज आई।
मैंने पैकेट पर लिखा - प्रिय विशाल, हार्दिक अभिनंदन ! अपने पिता की तरह सदा, आनंदित रहो !
" शिवराम ये लो। "
" ये किसलिए साहब ? आपने मुझसे दो मिनिट बात की, उसी में सब कुछ मिल गया। "
" ये विशाल के लिए है! इससे उसे उसकी पसंद की पुस्तक लेकर देना। "
शिवराम बिना कुछ बोले पैकेट को देखता रहा।
" चाय वगैरह कुछ लोगे ? "
" नहीं साहब, और शर्मिन्दा मत कीजीए। सिर्फ इस पैकेट पर क्या लिखा है, वो बता दीजिए, क्योंकि मुझे पढ़ना नहीं आता। "
" घर जाओ और पैकेट विशाल को दो, वो पढ़कर बताएगा तुम्हें। " मैंने हँसते हुए कहा।
मेरा आभार मानता शिवराम चला गया लेकिन उसका आनंदित चेहरा मेरी नजरों के सामने से हटता नहीं था।
आज बहुत दिनों बाद एक आनंदित और संतुष्ट व्यक्ति से मिला था।
आजकल ऐंसे लोग मिलते कहाँ हैं। किसी से जरा बोलने की कोशिश करो और विवाद शुरू। मुझे उन माता पिताओं के लटके हुए चेहरे याद आए जिनके बच्चों को 90-95 प्रतिशत अंक मिले थे। अपने बेटा/बेटी को कॉलेज में एडमीशन मिलने तक उनका आनंद गायब ही रहता था।
मोगरे के फूल की खुशबू सूंघने में कितना समय लगता है ?
सूर्योदय-सूर्यास्त देखने के कितने पैसे लगते हैं ?
स्नान करते हुए अगर आपने गीत गाया, गुनगुनाया, तो कौन आपसे कॉम्पिटीशन करने आने वाला है ?
बारिश हो रही है ? बढ़िया है - जाओ भीगो उस बारिश में !
कुछ भी करने के लिए आपको मूड़ लगता है क्या ?
इंसान के जन्म के समय उसकी मुट्ठियाँ बंद होती हैं।
ईश्वर ने एक हाँथ में आनंद और एक में संतोष भरके भेजा है।
दूसरों से तुलना करते हुए
और पैसे,
और कपड़े,
और बड़ा घर,
और हाई पोजीशन,
और परसेंटेज...!
इस *और* के पीछे भागते भागते उस आनंद के झरने से कितनी दूर चले आए हम !!
No comments:
Post a Comment