Tuesday, 25 October 2016

ओशो

एक बुद्ध, एक कृष्ण, या एक मिस्टिक का नाम लो, जिस पर मेरी किताब न हो। कोई महान पुस्तक बताओ, जिस पर मेरे सम्वाद न हो।
एक सूफ़ी, एक संत, एक दार्शनिक, एक वैज्ञानिक बताओ जिस पर मैंने न कहा हो।
कोई राधा, कोई सीता, कोई मीरा, कोई राबिया, कोई लल्ला, कोई मल्ली बता दो।
एक मनु, एक मार्क्स, एक लेनिन, एक फ्रायड, एक जुंग, एक एडलर बता दो।
मैं लगातार अस्तित्वगत चेतना और स्त्री-पुरुष के समग्र नाते पर बोला। ध्यान, प्रेम, भक्ति और योग पर मैंने निरंतर कहा है।
एक सच्चा कलाकार, एक कवि, एक लेखक नहीं, जिस पर नहीं बोला।
लेकिन मूर्खों को सुनाई दिया सिर्फ 'सम्भोग' !
वह भी वैसा 'सम्भोग' यानी कुभोग, जिससे वे जन्मे हैं।
मगर विश्व-मनीषा सदा से मेरे साथ है। बुद्धों के साथ है।
उसे सच्चाई और समझ से जीने के लिए अब मेरी ज़रुरत नहीं है। उसे अपना दीया स्वयं जलाना आता है।
मैं राजनेताओं की भांति मूढ़ बहुमत को प्रसन्न करने नहीं आया। निर्दोष, साहसी और सच्चे लोगों के लिए आया हूँ।
सत्य और चेतनापथ चालाक और मूढ़ लोगों के लिए नहीं है।
उन्हें नरक चाहिए। वे उसके पात्र हैं।
ओशो

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