बचपन में हम बहुत अमीर हुवा करते थे!!
बारिश में 2 - 3 जहाज़ हमारे भी चला करते थे!!
काग़ज़ के ही क्यों नही,
पर हवा में हमारे भी!
विमान उड़ा करते थे !!
मिट्टी-रेत का ही क्यों ना हो
हमारे भी महल, क़िल्ले हुआ करते थे !!!
अब कहा रही वो अमीरी,
अब कहा रहा वो बचपन!!
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और
"किस्मत" महलों में राज करती है!!
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ ख़ुदा....
पर चुप इसलिये हूँ कि
जो दिया तूने
वो भी बहुतो को नसीब नहीं हुआ""
सुप्रभात
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