नारी और पेङ एक से होते हैं
खुश हो तो दोनो फूल से सजते है
दोनो ही बढते ओर छंटते है
इनकी छाव में कितने लोग पलते है
देना देना ही इनकी नियती है
औरों की झोली भरना इनकी प्रकृति है
धूप और वर्षा सहने की शक्ति पेङ मे है
दुख पाकर भी सह लेना *नारी* की ही शक्ति है
*नारी* और पेङ मे एक अबूझ रिश्ता है
जो दोस्ती से मिलता जुलता है
पेङ चाहता है कुछ पानी कुछ खाद
*नारी चाहती है सिर्फ प्यार और सम्मान*
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